tag:blogger.com,1999:blog-6765692513591503842024-03-13T15:18:47.622-07:00my health careअपनी दिशा बदलो दशा अपने आप बदल जाएगी ,.. Change its direction will change on its own..
AAYURVED, MODREN, NUTRITION DIET & PSYCOLOGY गोपनीय ऑनलाइन परामर्श -- आपको हमारा परामर्श गोपनीयता की गारंटी है. हमारा ब्लॉग्स्पॉट, विश्वसनीय, सुरक्षित, और निजी है. एक उर्जावान, दोस्ताना, पेशेवर वातावरण में भौतिक चिकित्सा के लिए सर्वोत्तम संभव कार्यक्रम प्रदान करना है.Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.comBlogger126125tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-68106070439187987352018-09-05T22:30:00.000-07:002018-09-05T22:30:20.748-07:00आयुर्वेद के अनुसार मानस रोग<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
रजस्तमश्च् मानसौ दोषौ-तयोवकारा काम, क्रोध, लोभ, माहेष्यार्मानमद शोक चित्तोस्तो द्वेगभय हषार्दयः ।<br />
रज और तम ये दो मानस रोग हैं । इनकी विकृति से होने वाले विकार मानस रोग कहलाते हैं ।<br />
<br />
मानस रोग-<br />
काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्यार्, मान, मद, शोक, चिन्ता, उद्वेग, भय, हषर्, विषाद, अभ्यसूया, दैन्य, मात्सयर् और दम्भ ये मानस रोग हैं ।<br />
<br />
१. काम- इन्द्रियों के विषय में अधिक आसक्ति रखना 'काम' कहलाता है ।<br />
<br />
२. क्रोध- दूसरे के अहित की प्रवृत्ति जिसके द्वारा मन और शरीर भी पीड़ित हो उसे क्रोध कहते हैं ।<br />
<br />
३. लोभ- दूसरे के धन, स्त्री आदि के ग्रहण की अभिलाषा को लोभ कहते हैं ।<br />
<br />
४. ईर्ष्या- दूसरे की सम्पत्ति-समृद्धि को सहन न कर सकने को ईर्ष्या कहते हैं ।<br />
<br />
५. अभ्यसूया- छिद्रान्वेषण के स्वभाव के कारण दूसरे के गुणों को भी दोष बताना अभ्यसूया या असूया कहते हैं ।<br />
<br />
६. मात्सर्य- दूसरे के गुणों को प्रकट न करना अथवा कू्ररता दिखाना 'मात्सर्य' कहलाता है ।<br />
<br />
७. मोह- अज्ञान या मिथ्या ज्ञान (विपरीत ज्ञान) को मोह कहते हैं ।<br />
<br />
८. मान- अपने गुणों को अधिक मानना और दूसरे के गुणों का हीन दृष्टि से देखना 'मान' कहलाता है ।<br />
<br />
९. मद- मान की बढ़ी हुई अवस्था 'मद' कहलाती है ।<br />
<br />
१०. दम्भ- जो गुण, कमर् और स्वभाव अपने में विद्यमान न हों, उन्हें उजागर कर दूसरों को ठगना 'दम्भ' कहलाता है ।<br />
<br />
११. शोक- पुत्र आदि इष्ट वस्तुओं के वियोग होने से चित्त में जो उद्वेग होता है, उसे शोक कहते हैं ।<br />
<br />
१२. चिंता- किसी वस्तु का अत्यधिक ध्यान करना 'चिन्ता' कहलाता है ।<br />
<br />
१३. उद्वेग- समय पर उचित उपाय न सूझने से जो घबराहट होती है उसे 'उद्वेग' कहते हैं ।<br />
<br />
१४. भय- अन्य आपत्ति जनक वस्तुओं से डरना 'भय' कहलाता है ।<br />
<br />
१५. हर्ष- प्रसन्नता या बिना किसी कारण के अन्य व्यक्ति की हानि किए बिना अथवा सत्कर्म करके मन में प्रसन्नता का अनुभव करना हषर् कहलाता है ।<br />
<br />
१६. विषाद- कार्य में सफलता न मिलने के भय से कार्य के प्रति साद या अवसाद-अप्रवृत्ति की भावना 'विषाद' कहलाता है ।<br />
<br />
१७. दैन्य- मन का दब जाना- अथार्त् साहस और धैर्य खो बैठना दैन्य कहलाता है ।<br />
<br />
ये सब मानस रोग 'इच्छा' और 'द्वेष' के भेद से दो भागों में विभक्त किये जा सकते हैं । किसी वस्तु (अथर्) के प्रति अत्यधिक अभिलाषा का नाम 'इच्छा' या 'राग' है । यह नाना वस्तुओं और न्यूनाधिकता के आधार पर भिन्न-भिन्न होती है ।<br />
<br />
हर्ष, शोक, दैन्य, काम, लोभ आदि इच्छा के ही दो भेद हैं । अनिच्छित वस्तु के प्रति अप्रीति या अरुचि को द्वेष कहते हैं । वह नाना वस्तुओं पर आश्रित और नाना प्रकार का होता है । क्रोध, भय, विषाद, ईर्ष्या, असूया, मात्सर्य आदि द्वेष के ही भेद हैं ।</div>
Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0Sapol, Rajasthan, India25.1184834 73.736017525.060974899999998 73.6553365 25.1759919 73.8166985tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-60510467399982071132018-07-09T08:16:00.000-07:002018-07-09T08:16:13.448-07:00Psychologcal Counselor in Rajsamand<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
Psychological Counselor Service is available for you in rajsamand Rajsthan<br />
<br />
Dr, Raghunath Singh Ranawat sapol<br />
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Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0Sapol, Rajasthan, India25.1184834 73.736017525.060974899999998 73.6553365 25.1759919 73.8166985tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-15192914095901854252018-07-03T06:16:00.001-07:002018-07-03T06:16:29.615-07:00my health care: जीवनशैली<a href="http://careinindia.blogspot.com/2018/07/blog-post.html?spref=bl">my health care: जीवनशैली</a>: आधुनिक जीवनशैली बच्चे बड़े सभी में परिवर्तन आ चूका है, इंटरनेट जैसा शब्द किसी के लिए फ़ायदेमंद, किसी के लिए लाभदायक, तो किसी के लिए नुकसानदा...Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-13222231809622369232018-07-03T06:12:00.000-07:002018-07-03T06:12:11.423-07:00जीवनशैली <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आधुनिक जीवनशैली बच्चे बड़े सभी में परिवर्तन आ चूका है, इंटरनेट जैसा शब्द किसी के लिए फ़ायदेमंद, किसी के लिए लाभदायक, तो किसी के लिए नुकसानदायक.<br />
<br />
उर्जावान आर्थिक सम्पन्न व्यापारी गण सर्वाधिक फायदा ले रहे है, अपना व्यापार को नई ऊचाई दे के और सुदृढ़ हो रहे है, एक स्थान पर बैठे बैठे आसानी से अपने व्यापार का संचालन करे रहे है,<br />
<br />
सरकारी संस्थाएँ, गैर सरकारी संस्थाएँ भी कदम से कदम मिलाते चल रहे है, विधार्थी जीवन भी इस से सफल बना रहे है,<br />
<br />
अपराधी भी अपना अपराध बढ़ाने में पीछे नहीं है.<br />
<br />
परन्तु सर्वाधिक नुकसानदायक उन युवाओं का हो रहा है, जो अपनी संस्कृति को भुला कर, अपने परिवार की आज्ञा नही मानकर एक नशे के रूप में इंटरनेट का उपयोग का दुरुपयोग कर रहे है. अपनी जवाबदारी को भूल कर एक बाध्यकारी आदत से मजबूर हो कर हर दम इंटरनेट के फेसबुक, यूट्यूब, वेबसाइट और वाट्स एप से चिपके रहते है, ये इस प्रकार से जो लोग अपनी पिता, पत्नी, पति या भाई-बहनों की कमाई से अपने जीवन को बर्बाद ही कर रहे है,<br />
<br />
आज कल बच्चो को भी इस स्मार्ट फोन से मानसिक विकास में बाधा उत्पन्न होने में अभीभावक का सयोग होना पाया गया है, बच्चो की अनावश्यक मांग को मना नहीं कर पाने के कारण से बच्चो को स्मार्ट फोन की आवश्यकता नहीं होने के बाद भी माता-पिता फोन उपलब्ध करा देते है, जब माता पिता बच्चे की ज़िद छुड़ाने के कारण स्मार्ट फोन दे देते जिसमे माता का सहयोग अधिक पाया जाता है, बच्चा अपने पास के वातावरण से प्रभावित ये भूल जाता की मुझे भविष्य में अपना जीवन सुधारना है, धीरे धीरे बच्चा इतना आदि हो चूका होता है की एक नशे के रूप में बाध्यकारी जीवन जीता जो अब दिन क्या, रात्रि क्या, हमेशा आन लाइन ही रहता हैं,<br />
<br />
अपने बच्चे को समझाये की उसके लिए कितना नफा-नुकसान होता है, अपने बच्चे को रोकिये, नहीं माने तो टोकिये, स्कूल में जिस तरह पढ़ाई का टाइम टेबल होता वैसे ही इंटरनेट का एक टाइम टेबल निर्धारण कीजिये, </div>
Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0Sapol, Rajasthan, India25.1184834 73.736017525.060974899999998 73.6553365 25.1759919 73.8166985tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-63632334529832015312016-03-17T03:17:00.001-07:002016-03-17T03:17:49.964-07:00रिश्ते में धोखा दे <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आखिर क्यों बहुत सी शादीशुदा महिलाएं देती हैं गैर मर्दों को एंट्री !<br />
जयपुर।<br />
मैरिड लाइफ में मैच्योर महिलाएं आखिर क्यों अपनी लाइफ में पसंद करती हैं गैर मर्दों का आना और करती हैं पति से चीटिंग...<br />
1- सेक्सुअल रिलेशन में सेटिस्फाई नहीं होना इसका एक बड़ा कारण है कि महिलाएं गैर मर्दों के प्रति आकर्षित होती हैं और उनके साथ रिलेशन बनाने को गलत नहीं मानती। यही कारण है एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर बढ़ते जा रहे हैं। दरअसल इंडियन वाइफ इस बात को अपने पति से खुलकर नहीं कह पाती और दूसरा विकल्प तलाशने लगती हैं।<br />
2- अकेलापन और लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप के कारण भी मैरिड वुमन की लाइफ में पति से भी ज्यादा महत्वपूर्ण कई पुरुष हो जाते हैं। चाहे जरूरत के चलते या फिर अकेलापन मिटाने के चलते। ऐसे में इमोश्नल रिलेशन कब फिजिकल रिलेशन में बदल जाता है, उन्हें खुद को पता नहीं चलता और यह उन्हें गिल्टी भी फील नहीं कराता।<br />
3- आपसी अनबन के कारण भी इंडियन कपल रिश्तों में धोखा देते हैं। महिलाएं लगातार ऐसी परिस्थिति झेलते-झेलते पति से चीटिंग कर बैठती हैं और देती हैं अपनी लाइफ में गैर मर्दों को एंट्री।<br />
4- बेमेल शादियां भी इसका बड़ा कारण है। भारत में बेमेल विवाह खूब होते हैं। जबरन बिना राय लिए माता-पिता शादी कर देते हैं, खासतौर पर लड़कियों के साथ ऐसा ज्यादा होता है। ऐसे में वकिंग प्लेस पर किसी से दोस्ती होने पर महिलाओं को लगता है कि वह ही उनका सोलमेट। ऐसे में पति को साइड करने में वे गुरेज नहीं करती।<br />
5- उम्र का गैप होने के कारण भी कपल्स के बीच किसी तीसरे की एंट्री हो जाती है। ऐसे में पति का अफेयर भी किसी अन्य महिला से हो जाता है।<br />
6- पैसे और शोहरत के लिए भी बहुत सी शादीशुदा महिलाएं अपने पति को धोखा देती हैं। हैरत की बात यह है कि वे इसे धोखा नहीं मानतीं। वे इसे गलत भी नहीं मानतीं।<br />
सौजन्य से<br />
Patrika news network Posted: 2016-03-15 16:46:53 IST<br />
<br /></div>
Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-66505028415066292582014-11-19T19:50:00.000-08:002014-11-19T19:50:21.232-08:00संत <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: magenta;">आध्यात्मिक बनाम मनोविज्ञान </span><br />
<br />
<span style="color: red;">1. क्यों पैदा होते नकली संत ?</span><br />
<span style="color: red;">2. किस कारण से नकली संत की भरमार बढ़ रही भारत में ? </span><br />
<span style="color: red;">3. क्यों जाते नकली संत के पास लोग ?</span><br />
<span style="color: red;">4. क्या समस्या है जनता की ?</span><br />
<span style="color: red;">5. नेता और अभिनेता भी क्यों जाते इन नकली संत की चरण में ?</span><br />
<br />
भारत में आध्यात्मिक मनोविज्ञान की दुर्दशा कांग्रेस सरकार ने की, कांग्रेस ने भारतीय जनता के मनोदशा की समस्याओं को कभी भी जानना नहीं चाहा और नहीं आधुनिकता के मनोविज्ञानी अनुसंधान पर कोई नियुक्ति केंद्र स्थापित नहीं किये !<br />
<br />
<span style="color: red;">1. क्यों पैदा होते नकली संत ?</span><br />
आधुनिकता की प्रगति में हर इन्सान जल्दबाजी से साधन सम्पन्न और ऐश्वर्य युक्त होना चाहता हैं. बिना पूँजी लगाने लोगो के मन तक पहुचने का सबसे सरल तरीका भगवान का दर्शन बता कर दुनिया की जनता का दर्द, परेशानियाँ, व्याधिया दूर करने का सरल तरीका होने से ये नकली संत पैदा होते हैं. <br />
<br />
<span style="color: red;">2. किस कारण से नकली संत की भरमार बढ़ रही भारत में ? </span><br />
सरकारी कोई नियमावली नहीं होने से कुकुरमुत्ता के समान बढती संत की सख्यां के कारण ये लोग नकली संत जल्दी उभर जाते. <br />
<br />
<span style="color: red;">3. क्यों जाते नकली संत के पास लोग ? </span><br />
बिखरे जन समुदाय की एक मानसिक परेशानियाँ, जिसने मनोदैहिक समस्याओं के साथ पारिवारिक समस्या और सामाजिक समस्या के निराकरण एक दीखता एक रास्ता जो. <br />
<br />
<span style="color: red;">4. क्या समस्या है जनता की ?</span><br />
बीमारी एक तिल समान होती जिसको मनो जन्य ताड़ के समान दिखती का निदानात्मक किसके पास जाने का रास्ता नहीं दिखने से भगवान की चरण जाने का रास्ता गुरु बताता ये जान के नकली संत से मिलना का कारण.<br />
<br />
<span style="color: red;">5. नेता और अभिनेता भी क्यों जाते इन नकली संत की चरण में ?</span><br />
बनी बनाई भीड़ सरलता से बिना प्रयास किये बिना खर्च किये जल्दी प्रचार का माध्यम होता इस कारण से नेता और अभिनेता भी इनकी चरण में जाते.<br />
<br />
<span style="color: blue;"><br /></span>
<span style="color: magenta;">नोट -</span> <span style="color: blue;">अपनी समस्याओ को परिवार के साथ साझा करे सबसे बढिया उपाय अथवा निकतम किसी मनोविज्ञानी से परामर्शदाता से सम्पर्क करे !</span> अथवा मै हूँ ना,<span style="color: red;"> मुझ से सम्पर्क करे !</span></div>
Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-83525264309868220002014-11-18T02:43:00.000-08:002014-11-18T02:43:24.513-08:00व्यक्ति की विकृति <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
संत बनाम मानसिक परेशानिया<br />
<br />
संत शब्द भारतीय आध्यात्मक गुरु के रूप में जाना जाता हैं. संत, ज्ञानी, महात्मा, ऋषि, धर्मात्मा, मुनि, धर्मात्मा मनुष्य, सेज, दाना, एकांतवासी, तपस्वी, संन्यासी, मुनि, सन्यासी, स्वामी. अर्थात आज का आध्यात्मक मनोविज्ञानी मेरा मानना हैं.<br />
<br />
व्यक्ति एक सामुदायिक प्राणी हैं, व्यक्ति एक सामुदायिकता का हिस्सा हैं. समाज में जीने के लिए परिवार का विस्तार और उस विस्तार में अर्थ की आवश्यकताओं की पूर्तिकर्ता के साथ पर्यायवरण को संतुलन में कभी कभी मानसिक असंतुलन आ ही जाता हैं. जिससे व्यक्ति के कृति में विकृति का समावेश होता हैं. तब किसी संत महात्मा से सुजाव या सलाह की आवश्यकता होती हैं, <br />
<br />
आज बदनाम संत आशाराम हो या संत रामपाल. या संत नित्यानंद या संसार में कोई अन्य संत हो. जब तक ये अपने उपदेशो से व्यक्ति के व्यक्तित्व में कोई विकार से ठीक करते, उसको ठीक होता किसी को दिखाई नहीं देता.<br />
<br />
हकीकतों से वास्ता देखा जाए तो आप को ज्ञात होगा की इनके शिष्यों को क्या फायदा या नुकसान हुआ से ज्यादा महत्वपूर्ण ये हैं की "लोग मनोदशा से, मनो दैहिक, मनो सामाजिक या मनो पारिवारिक समस्याओ से कितने पीड़ित है". <br />
<br />
कुछ लोग आवेश से व्यक्ति की परेशानियों को समझे बिना अंध भक्त का नारा लगाते ! भक्त अंधे हो सकते परन्तु सभी नहीं, प्राय ठगा जाना जीवन में हर किसी से होता, फिर भी मनुष्य जीवन की अपनी समस्याओ के निवारणार्थ तो किसी से परामर्श लेना जरूरी होता और उस परामर्श से किसी विकृति में सुकृति या समस्या का समाधान होता तो सार्थक हैं.<br />
<br />
हकीकत तो आज के युग में मानसिक परेशानिया व्यक्ति को बहुत सता रही, आज का व्यक्ति मनोदशा से परेशान बहुत हैं, जब ये परेशानिया जो दूर कर देता तो इन्सान को जब अधेरा दिखाई देता और संत प्रकाश बता देता तो उस आराम मिल जाता.<br />
<br />
संतो की समस्या की इतना एश्वर्य मिल जाता, जिससे उस योग से भोग की और उनकी इन्द्रिया घोड़ो के वेग से गमन करती तो वो भी उस भीड़ की कृति में उनका मन भी विकृतियों में अग्रसर हो जाता जिस कारण से वो अपराध की और कब बढ़ते इस बात का पता लगता तब तक देर हो चुकी होती है.<br />
<br />
नोट - मै किसी भी संत का प्रचारक या विरोधी नहीं हूँ. <br />
<br />
<br /></div>
Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-26612997738314311772014-11-12T02:12:00.000-08:002014-11-12T02:12:59.076-08:00"पथरी" कैसे बनती !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: red;">पथरी कैसे बनती हैं, उसकी कितनी जातियां हैं. और उनके लक्षण क्या क्या होते ? इस प्रकार का प्रश्न होना स्वभाविक होता हैं.</span><br />
पथरी की व्याख्या - नये घड़े में रखें हुए स्वच्छ पानी में भी जैसे कुछ समय के बाद कीच या जमी बारीक़ रेती का पावडर दीखता उसी प्रकार से मनुष्य शरीर में बस्ती रूप में पथरी जम जाती हैं, <br />
जब आकाश में वायु और बिजली की अग्नि बाँध कर ओले बना देती हैं. वैसे ही बस्ती स्थान पर प्राप्त हुए वायु से युक्त पित्त जमा कर पथरी बना देते हैं.<br />
वृक्क में जब किसी कारण से यूरिक एसिड, युटेरस, आक्जेलेट्स इत्यादि लवण अधिक मात्राओं में उत्सर्जित होते हैं. तब मुत्रस्थ जलांश में इनका विलय होना कठिन हो जाता हैं. इसलिए उनका कुछ सूक्ष्म स्फटिक के रूप में गवीनी के उर्ध्व भाग में या बस्ती में अवक्षिप्त हो जाता हैं. और उनके चारो ओर लवण के कण संगठित होकर पथरी बन जाते हैं.<br />
पथरी या अश्मरी को अंग्रेजी भाषा में 'कैलकुलस" कहते हैं. अश्मा [ पत्थर ] के समान कठिन होने से इस बीमारी को अश्मरी या पथरी कहते हैं.<br />
पथरी की उत्पति में प्रकार भेद के कारण भी अनेक होते हैं. तथापि संशोधन का अभाव और आहार-विहार का विकार से ही दो प्रधान कारण सामान्यता मिलते हैं. ............................................... बाकी समय मिलने पर अपडेट </div>
Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-71489904963852182682014-10-29T04:28:00.001-07:002014-10-29T04:28:15.149-07:00कथनी और करनी के भेद <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं.<br />
मनुष्य के चित से विचार की उत्पति शब्दों से होती हैं. शब्दों को फलित होने या नहीं होने में स्थिति असंतुलित होती हैं. इस असंतुलन में तीन प्रकार के संतुलन पाए जाते हैं.<br />
पहला प्रकार का मनुष्य गुलाब के फुल की भाती होता है.वो हमेशा ताज़ा खिला होता हैं, अपनी खुशबू से सभी का मन मोह लेता हैं अर्थात मात्र फूलता ही फलता नहीं जैसे सिर्फ बोलता हैं, कथनी ही करता हैं. कर कुछ भी नहीं सकता.<br />
दूसरा प्रकार का मनुष्य आम के वृक्ष के समान होता हैं. जो हमेशा फूलता हैं मद मस्त खुशबूदार मौसम पैदा करता हैं.और फलता भी हैं. मीठे रसीले आम भी देता हैं.अर्थात फूलता भी हैं और फलता भी हैं. यानि इस प्रकार के मनुष्य जो कहता भी उसको कर के भी दिखाता हैं.<br />
तीसरा प्रकार का मनुष्य गुल्लर के समान होता हैं. जिस पर फल आता जिसको काष्ट फल भी कहते हैं. ये फूलता नहीं, सिर्फ फलता हैं. इस प्रकार का मनुष्य अपने कर्म को वाचाल नहीं करता बल्कि उस के कर्म को करके ही दिखाता हैं. </div>
Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-28093509995969610212014-10-25T20:11:00.000-07:002014-10-25T20:39:34.477-07:00एडमिनापन <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: red;">एडमिने </span><br />
<span style="color: blue;">एडमिनापन एक उभरती आधुनिकता की इंटरनेट गाली. </span><br />
समय परिवर्तनशील होता हैं, पुराने जमाने में एक शब्द राजकीय [ शासकीय ] कर्मचारी के लिए सम्बोधन शब्द था, कमीण. कमीण से कमीणा शब्द क्रोध या गुस्से से पुकारा जानेवाला शब्द बना, <br />
<br />
राणा महाराणाओ, राजा महाराजाओ के शासनकाल में व्यवस्थाओ के लिए नौकर रखे जाते उस समय शासकीय व्यवस्था को देख रेख के लिए उन नौकरों को कमीण बोला जाता था. उन नौकरों को उस समय मासिक वेतन नहीं मिलता था. उन कमीनो को छ्मासिक फसलो से हिस्सा दिया जाता और तीज त्यौहार पर को नया दिन माना जाता, जो एक वर्ष के बाद आता. जिसको भोजन कपड़ो से वस्तु विनमय कर के दिया जाता. उन व्यवस्थापको की जवाबदारी के मध्य जब वो भ्रष्टाचार के माध्यमो जनता को परेशान किया जाता तो उसके पीठ पीछे जनता कमीण को कमीना कह कर पुकारते. <br />
<br />
कमीना [ कमिंणा या कमीने ] जिसको कभीकभार कोई हरामी या हरामजादा भी कह कर पुकारा जाता उसी भाती आज नये इंटरनेट के ज़माने में इंटरनेट समूहों में एडमिन या एडमिना [ एडमिनापन ] भी गाली बनता जा रहा हैं. <br />
<span style="color: red;">कैसे और क्यों यह शब्द गाली बनता जा रहा देखे.</span><br />
आज हर एक **बुक पर समूह पेज बना रहा हैं. जिसकी व्यवस्था के लिए अवैतनिक एडमिन दो-चार रक्खे जा रहे, जिनके विशेष नियम नहीं होते अथवा आचार सहिता होती नहीं उस समूह की प्रकृति मान लो.<br />
<span style="color: blue;">1.</span> मेंडक के स्वभाव के सारे सदस्य हैं, और उस समूह में कोई साप किस्म का मेम्बर आ जाता तो उसका विरोध करने का कोई उपाय नहीं होता उसका विरोध पर समूह की बिना सलाह की बजाय एक का एडमिनापन भारी.<br />
<span style="color: purple;">2.</span> कुछ समूह गिदडो के स्वभाव के समान उसमे शेर स्वभाव को सदस्य आ जाता तो उस शेर को बाहर का रास्ता दिखाना में उनका विरोध पर समूह की बिना सलाह की बजाय, एक का एडमिनापन भारी.<br />
<span style="color: magenta;">3. </span>कुछ समूह चन्दन की खुशबूदार में कोई गर्म तासीर का व्यक्ति भी आ जाता तो वहा से आगन्तु को शीतलता मिलती उसकी संख्या कम हैं, उनका विरोध तो समूह की बिना सलाह की बजाय, एक का एडमिनापन भारी.<br />
<span style="color: red;">4.</span> कुछ समूह साफ-सुथरे पर शिक्षा को भेदभाव में अधिक-निम्न के असंतुलन में विरोध में उनका विरोध पर समूह की बिना सलाह की बजाय एक का एडमिनापन भारी. <br />
<span style="color: blue;">5.</span> कुछ समुह थोथे जिनके बड़े-बड़े बडबोलापन घर पर क्या समीकरण पता नहीं और दुनिया करली मुठी में वहा कोई सच बोल दे तो उनका विरोध पर समूह की बिना सलाह की बजाय, एक का एडमिनापन भारी.<br />
<span style="color: lime;">6. </span>कुछ समूह मुह में राम बगल में छुरी और उनका कोई सच्चा विरोध करे तो उस विरोध पर समूह की बिना सलाह की बजाय, एक का एडमिनापन भारी.<br />
<span style="color: red;">7. </span>उत्तम समूहों<span style="color: red;"> </span>का यहाँ कोई अनुसन्धान नहीं किया गया जिनकी संख्या बहुत कम कटु सत्य हकीकत तो समान विचारो का ही समूह होता हैं.<br />
उस समय कोई एडमिन उस विरोधी प्रकृति वाले को बाहर निकाल देते जब की अपनी आचार सहिता पर कोई प्रबंधन नहीं होता या आपसी सहमतियों के विरोध निर्णय की पहुच से दूर करके एक एडमिन जैसे <span style="color: blue;">"चाय से केतली ज्यादा गर्म" </span>का स्वभाव वाले <span style="color: red;">एड्मिनापन</span> ही कहा जाता हैं. <br />
<span style="color: red;">जो एक कमीने की तरह की गाली एड्मिने बनता जा रहा हैं.</span><br />
<span style="color: red;"><br /></span></div>
Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-51314488512241029382014-10-25T00:44:00.002-07:002014-10-25T02:35:16.494-07:00 चित्ताकर्ष्ण<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
चित का आकर्षण में धनात्मक स्थान्तरण और ऋणात्मक स्थान्तरण होने की से रोग अपनी उर्जा का बर्बाद करने से नहीं रुकता. जिसका कारण दमित स्मृतियों एवं मानसिक संघर्षों में रोगी को सूझ उत्पन्न नहीं होती, जिससें उस मनुष्य में दमित स्मृतियों, चिन्तनो, डर, आशंकाओं एवं मानसिक संघर्षों का उत्पन्न होना मनोलेंगिक विकास [ psychosexual development ] में उत्पन्न समस्याओं के कारण होते है जिसमे आपसी टकराव बना रहता हैं. बल्कि दोष पूर्ण जीवनशैली तथा मन में गलत धारणाओ का विकास होता रहता हैं. </div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
रोग में अपने अहं के कारण मानसिक उर्जा पर नियंत्रण नहीं रहता हैं. रोगी धीरे नियमित उपाहं [ id ] तथा पराहं [ super ego ] की क्रियाओं पर अहं [ ego ] का नियंत्रण नहीं रहता. संघर्ष, इच्छाओ, डर आदि को अचेतन [ unconscions ] से बाहर निकलने में पर्याप्त सूझ [ insight ] विकसित करने की कोशिश नहीं करता. और निरंतरता से उलझा हुआ रहता हैं,</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
इसको सरल भाषा में यू समझा जा सकता हैं.</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
मनुष्य के चित वर्तमान पूर्व दमित स्मृतियों, चिन्तनो, डर, आशंकाओं कारण अपने में रक्षात्मक मनोवृति से झुझता हैं. जो एक जीवनशैली बन जाता हैं,</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
1 धनात्मक स्थान्तरण [ positive transferensce ] विचार जैसे दिखी शराब की बोतल ही पक्ष में अपने प्रति स्नेह एवं प्रेम दीखता हैं.</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
<span style="text-align: left;"><span style="text-align: center;">2. ऋणात्मक स्थान्तरण [ negative transferensce ] विचार जैसे दिखी शराब की बोतल में विरोध में चिल्लाना शुरू हो जाता हैं अपनी घृणा एवं संवेगों को विलग की प्रतिक्रियाओं को प्रकट करता हैं, 3. प्रति स्थान्तरण [ coutner transferensce ] ये अवस्था विश्लेषणात्मक नजर से देखता हैं. </span> </span><span style="font-family: Mangal, serif;"> </span><span style="font-family: Mangal, serif;"> </span><span style="font-family: Mangal, serif;"> </span><span style="text-align: center;"> </span><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiZMxKUYf-e29JWAM_mLX7SU3uuDstiKXHgqRww_RVjsNLRiRZdaSJ0GGd1fwsk16qhDd-VoqA7Ni6fN8I69-Ld1T7dH3ZJgKxKkP6M-vXEwXQZBxGUn6iRsmigWruJxOYieTKR87upvlc/s1600/aaa.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiZMxKUYf-e29JWAM_mLX7SU3uuDstiKXHgqRww_RVjsNLRiRZdaSJ0GGd1fwsk16qhDd-VoqA7Ni6fN8I69-Ld1T7dH3ZJgKxKkP6M-vXEwXQZBxGUn6iRsmigWruJxOYieTKR87upvlc/s1600/aaa.jpg" height="281" width="400" /></a></div>
<br />
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<span style="color: red;">सामान्य पुरुष के लक्षण </span></div>
<div>
धीरज और संतोष वाले सामान्य मनुष्य को शराब की बोतल के अलावा, कुछ अन्य आकृतियों युक्त की भी मिठाई दिखती साथ मानव का चित्र भी दिखता जिसकी कोई प्रतिक्रियाओ का होना प्रकटीकरण नहीं होता. </div>
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Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-67489710441211157922014-10-13T19:48:00.003-07:002014-10-13T19:48:38.094-07:00 शहद<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: red;"> शुद्ध शहद की पहचान.......</span><br />
शुद्ध शहद में खुशबू रहती है। वह सर्दी में जम जाता है तथा गरमी में पिघल जाता है।<br />
शुद्ध शहद को कुत्ता नहीं खाता।<br />
कागज पर शहद डालने से नीचे निशान नहीं आता है।<br />
शहद की कुछ बूंदे पानी में डालें। यदि यह बूंदे पानी में बनी रहती है तो शहद असली है और शहद की बूंदे पानी में मिल जाती है तो शहद में मिलावट है। रूई की बत्ती बनाकर शहद में भिगोकर जलाएं यदि बत्ती जलती रहे तो शहद शुद्ध है।<br />
एक ज़िंदा मक्खी पकड़कर शहद में डालें। उसके ऊपर शहद डालकर मक्खी को दबा दें। शहद असली होने पर मक्खी शहद में से अपने आप ही निकल आयेगी और उड़ जायेगी। मक्खी के पंखों पर शहद नहीं चिपकता।<br />
कपड़े पर शहद डालें और फिर पौंछे असली शहद कपडे़ पर नहीं लगता है।<br />
<span style="color: blue;"> रोगों में शहद का प्रयोग .....</span><br />
कुछ बच्चे रात में सोते समय बिस्तर में ही मूत्र (पेशाब) कर देते हैं। यह एक बीमारी होती है। सोने से पहले रात में शहद का सेवन कराते रहने से बच्चों का निद्रावस्था में मूत्र (पेशाब) निकल जाने का रोग दूर हो जाता है।<br />
एक चम्मच शुद्ध शहद शीतल पानी में मिलाकर पीने से पेट के दर्द को आराम मिलता है।<br />
एक चुटकी सौंठ को थोड़े से शहद में मिलाकर चाटने से काफी लाभ होता है। दो तुलसी की पत्तियां पीस लें। फिर इस चटनी को आधे चम्मच शहद के साथ सेवन करें।<br />
रात्री को सोते समय एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद मिलाकर पी लें। इसके इस्तेमाल से सुबह पेट साफ हो जाता है।<br />
एक गिलास पानी में एक चम्मच नींबू का रस तथा आधा चम्मच शहद मिलाकर लेना चाहिए। इससे अजीर्ण का रोग नष्ट हो जाता है।<br />
शहद में दो काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर चाटना चाहिए।<br />
अजवायन थोड़ा सा तथा सौंठ दोनों को पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को शहद के साथ चाटें।<br />
शहद को जरा सा गुनगुने पानी के साथ लेना चाहिए।<br />
शहद में सौंफ, धनिया तथा जीरा का चूर्ण बनाकर मिला लें और दिन में कई बार चाटें। इससे दस्त में लाभ मिलता है।<br />
अनार दाना चूर्ण शहद के साथ चाटने से दस्त बंद हो जाते हैं।<br />
अजवायन का चूर्ण एक चुटकी को एक चम्मच शहद के साथ लेना चाहिए। दिन में तीन बार यह चूर्ण लेने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।<br />
सौंठ, कालीमिर्च, पीपल, सेंधानमक इन सब चीजों को मिलाकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में से आधी चुटकी लेकर एक चम्मच शहद के साथ सुबह, दोपहर और शाम को इसका इस्तेमाल करें। एक दो कालीमिर्च तथा दो लौंग को पीसकर शहद के साथ चाटना चाहिए।<br />
धनिया तथा जीरा लेकर चूर्ण बना लें और शहद मिलाकर धीरे-धीरे चाटना चाहिए। इससे अम्लपित्त नष्ट होता है।<br />
सौंफ, धनियां तथा अजवायन इन तीनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। फिर इस चूर्ण में से आधा चम्मच चूर्ण को शहद के साथ सुबह, दोपहर और शाम को इसका सेवन करना चाहिए। इससे कब्ज दूर होती है।<br />
रात्रि को सोते समय एक चम्मच त्रिफला-चूर्ण या एरण्ड का तेल एक गिलास दूध के साथ लेना चाहिए। इससे कब्ज दूर हो जाती है।<br />
त्रिफला का चूर्ण शहद के साथ सेवन करें। इससे पीलिया का रोग नष्ट हो जाता है। गिलोय का रस 12 ग्राम शहद के साथ दिन में दो बार लें। नीम के पत्तों का रस आधा चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करना चाहिए।<br />
सिर पर शुद्ध शहद का लेप करना चाहिए। कुछ ही समय में सिर का दर्द खत्म हो जायेगा। आधा चम्मच शहद और एक चम्मच देशी घी मिलाकर सिर पर लगाना चाहिए। घी तथा शहद के सूखने के बाद दोबारा लेप करना चाहिए। यदि पित्त के कारण सिर में दर्द हो तो दोनों कनपटियों पर शहद लगायें। साथ ही थोड़ा शहद भी चाटना चाहिए।<br />
सर्दी, गर्मी या पाचन क्रिया की खराबी के कारण सिर में दर्द हो तो नींबू के रस में शहद को मिलाकर माथे पर लेप करना चाहिए।<br />
कागज के टुकड़ों पर शहद और चूना को मिलाकर माथे के जिस भाग में दर्द हो उस भाग पर रख देने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।<br />
भोजन के साथ शहद लेने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।<br />
रतौंधी ...शहद को सलाई या अंगुली की सहायता से काजल की तरह आंखों में सुबह के समय तथा रात को सोते समय लगाना चाहिए। काजल में शहद मिलाकर बराबर लगाते रहने से भी रतौंधी की बीमारी समाप्त हो जाती है। शहद को आंखों में काजल की तरह लगाने से रतौंधी रोग दूर होता है। आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।<br />
आंख में जलन के लिए शहद के साथ निबौंली (नीम का फल) का गूदा मिलाकर आंखों में काजल की तरह लगना चाहिए। शुद्ध शहद को सलाई या अंगुली की सहायता से काजल की तरह आंख में लगायें।<br />
आंखों के रोग के लिए एक ग्राम गुरुच का रस तथा आधा चम्मच शहद को मिला लें। फिर इसे आंखों में नियम से रोज सलाई से लगायें। आंखों की खुजली, दर्द, मोतियाबिंद तथा अन्य सभी रोगों के लिए यह उपयोगी अंजन (काजल) है।<br />
चार ग्राम गिलोय का रस लेकर उसमें दो ग्राम शहद मिलाकर लोशन बना लें। इसे आंखों में लगायें। आंखों के सभी रोगों में इससे लाभ होगा। रोज सुबह ताजे पानी से आंखों को छप्पा (पानी की छींटे) मारकर धोना चाहिए। इसके बाद दो बूंदे नीम का रस तथा चार बूंदे शहद मिलाकर आंखों में लगाना चाहिए। कड़वे तेल से बना हुआ काजल शुद्ध शहद के साथ मिलाकर आंखों में लगाना चाहिए।<br />
मुंह के छाले के लिए तवे पर सुहागे को फुलाकर शहद के साथ छालों पर लगाना चाहिए। इससे मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।<br />
छोटी इलायची को पीसकर बारीक चूर्ण बना लें। फिर शहद में मिलाकर छालों पर लगायें। फिटकरी को पानी में घोल लें और एक चम्मच शहद के साथ मिलाकर कुल्ला करें। यह कुल्ला भोजन करने से पहले सुबह, दोपहर तथा शाम को करना चाहिए।<br />
पेट में गर्मी ज्यादा हो तो त्रिफला का चूर्ण शहद के साथ लेना चाहिए। केवल आंवले का चूर्ण शहद के साथ लेने से भी पेट की गर्मी शांत होती है और मुंह के छाले ठीक होने लगते हैं।<br />
आवाज का बैठ जाना ...फूली हुई फिटकरी पीसकर शहद के साथ मिलाकर सेवन करें। इसमें पानी मिलाकर कुल्ला किया जा सकता है। मुलहठी का चूर्ण शहद के साथ चाटना चाहिए। कुलंजन मुंह में रखकर चूसने से भी आवाज खुल जाती है।<br />
3 से 9 ग्राम बहेड़ा के चूर्ण को शहद के साथ सुबह और शाम सेवन करने से स्वरभंग (गला बैठना) और गले के दूसरे रोग भी ठीक हो जाते हैं।<br />
1 कप गर्म पानी में 1 चम्मच शहद डालकर गरारे करने से आवाज खुल जाती है।<br />
थूक के साथ बलगम के लिए छाती पर शहद की मालिश करके गुनगुने पानी से धो लें। इससे थूक के साथ बलगम का आना बंद हो जाता है। रात्रि को सोने से पहले अजवायन का तेल छाती पर मलें। पिसी हुई हल्दी, अजवायन और सौंठ को मिलाकर एक चुटकी लेकर शहद में मिलाकर सेवन करें।<br />
पायरिया के लिए मसूढ़ों तथा दांतों पर शुद्ध शहद की मालिश करके गुनगुने पानी से कुल्ला करना चाहिए। नींबू का रस, नीम का तेल तथा शहद मिलाकर मसूढ़ों की मालिश करके कुल्ला कर लें। लहसुन, करेला, अदरक का रस निकालकर शहद में मिलाकर मसूढ़ों पर रोज लगाना चाहिए। तीन-चार दिन तक लगातार मालिश करने से पायरिया तथा मसूढ़ों के अन्य रोग खत्म हो जाते हैं।<br />
खांसी की बीमारी के लिए लाल इलायची लेकर इसे भून लें और चूर्ण बना लें, इसमें शहद मिलाकर सेवन करें। मुनक्का, खजूर, कालीमिर्च, बहेड़ा तथा पिप्पली-सभी को समान मात्रा में लेकर कूट लें और उसमें से दो चुटकी चूर्ण लेकर शहद में मिलाकर सेवन करें। 3 ग्राम सितोपलादि के चूर्ण को शहद में मिलाकर दिन में तीन बार चाटकर खाने से खांसी दूर हो जाती है।<br />
5 ग्राम शहद में लहसुन के रस की 2-3 बूंदे मिलाकर बच्चे को चटाने से खांसी दूर हो जाती है।<br />
एक नींबू पानी में उबालें फिर निकालकर कांच के गिलास में निचोड़ लें। इसमें 28 मिलीलीटर ग्लिसरीन और 84 मिलीलीटर शहद मिलाकर हिलाएं। एक-एक चम्मच चार बार पीने से खांसी बंद हो जाती है। शहद खांसी में आराम देता है। 12 ग्राम शहद को दिन में तीन बार चाटने से कफ निकल जाता है और खांसी ठीक हो जाती है। थोड़ी सी फिटकरी को तवे पर भून लेते हैं। इस 1 चुटकी फिटकरी को शहद के साथ दिन में 3 बार चाटने से खांसी में लाभ मिलता है।<br />
काली खांसी के लिए सबसे पहले रोगी की कब्ज को दूर करना चाहिए। इसके लिए एरण्ड का तेल पिलाया जा सकता है। इसके बाद चिकित्सा आरम्भ शुरू करनी चाहिए। चिकित्सा के लिए शहद में लौंग के तेल की एक बूंद तथा अदरक के रस की दस बूंदे मिलाकर सुबह, दोपहर और शाम को देनी चाहिए।<br />
दमा के लिए शहद में कुठार रस 4 बूंद मिलाकर दिन में 3-4 बार देना चाहिए। इससे दमा का रोग नष्ट हो जाता है।<br />
सोमलता, कूट, बहेड़ा, मुलेठी, अडूसा के पत्ते, अर्जुन की छाल तथा काकड़ासिंगी सबका एक समान मात्रा में लेकर पीस लें। इसमें से एक चम्मच चूर्ण शहद के साथ सेवन करें। प्यास लगने पर गर्म पानी पीयें।<br />
पसलियों में दर्द के लिए सांभर सींग को पानी में घिसकर शहद के साथ मिलाकर पसलियों पर लेप करना चाहिए।<br />
एक कप दूध में एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह के समय पीने से ताकत बढ़ती है।<br />
जुकाम के लिए शहद और अदरक का रस एक-एक चम्मच मिलाकर सुबह-शाम दिन में दो बार पीने से जुकाम खत्म हो जाता है और भूख बढ़ जाती है।<br />
2 चम्मच शहद, 200 मिलीलीटर गुनगुना दूध और आधे चम्मच मीठे सोडे को एक साथ मिलाकर सुबह और शाम पीने से जुकाम, फ्लू ठीक हो जाता है। इसको पीने से बहुत पसीना आता है पर पसीना आने पर रोगी को हवा नहीं लगने देना चाहिए।<br />
20 ग्राम शहद, आधा ग्राम सेंधानमक और आधा ग्राम हल्दी को 80 मिलीलीटर पानी में डालकर उबाल कर रख लें। कुछ देर बाद जब पानी हल्का सा गर्म रह जाये तो इस पानी को सोते समय पीने से जुकाम दूर हो जाता है।<br />
बिच्छू के डंक मारे हुए स्थान पर शहद लगाने से दर्द कम हो जाता है।<br />
जलन के लिए नियमित सुबह 20 ग्राम शहद ठंडे पानी में मिलाकर सेवन करने से जलन, खुजली और फुन्सियों जैसी चर्म रोग जड़मूल से समाप्त हो जाती है।<br />
शरीर के जले हुए अंगो पर शहद लगाने से जलन दूर होती है। जख्म होने पर शहद को तब तक लगाते रहे जब तक कि जख्म ठीक ना हो जायें। जख्म ठीक होने के बाद सफेद निशान बन जाते हैं। उन पर शहद लगाकर पट्टी बांधते रहने से निशान मिट जाते हैं।<br />
शीघ्रपतन के लिए स्त्री-संग सम्भोग से एक घण्टा पहले पुरुष की नाभि में शहद में भिगोया हुआ रूई का फोहा रखने से पुरुष का जल्दी स्खलन नही होता अर्थात पुरुष का लिंग शिथिल नहीं होता है।<br />
बलगम युक्त खांसी के लिए 5 ग्राम शहद दिन में चार बार चाटने से बलगम निकल कर खांसी दूर होती है। शहद और अडूसा के पत्तों का रस एक-एक चम्मच तथा अदरक का रस आधा चम्मच मिलाकर पीने से खांसी नष्ट हो जाती है।<br />
उल्टी के लिए गुड़ को शहद में मिलाकर सेवन करने से उल्टी बंद हो जाती है। उल्टी होने पर शहद को चाटने से उल्टी होना बंद हो जाती है। शहद में लौंग का चूर्ण मिलाकर चाटने से गर्भावस्था में उल्टी आने से छुटकारा मिलता है।<br />
रक्तविकार के लिए बकरी के दूध में आठवां हिस्सा शहद मिलाकर पीने से खून साफ हो जाता है। इसका प्रयोग करते समय नमक और मिर्च का त्याग कर देना आवश्यक है।<br />
यक्ष्मा या टी.बी. के लिए ताजा मक्खन के साथ शहद का सेवन करने से क्षय रोग में लाभ होता है। शहद में करेले का चूर्ण डालकर चाटना चाहिए।<br />
हाईब्लडप्रेशर के लिए दो चम्मच शहद और नींबू का रस एक चम्मच मिलाकर सुबह-शाम दिन में दो से तीन बार सेवन करने से हाई बल्डप्रेशर में लाभ होता है।<br />
कान दर्द के लिए कान में शहद डालने से कान की पीव और कान का दर्द नष्ट हो जाता है। कान में कनखजूरा सदृश जीव-जंतु घुस गया हो तो शहद और तेल मिलाकर उसकी कुछ बूंदे कान में डालने से लाभ होता है।<br />
आंख आना के लिए 1 ग्राम पिसे हुए नमक को शहद में मिलाकर आंखों में सुबह और शाम लगाऐं। सोनामक्खी को पीसकर और शहद में मिलाकर आंखों में सुबह और सांय लगाए। चन्द्रोदय वर्ति (बत्ती) को पीसकर शहद के साथ आंखों में लगाने से आंखों के रोग दूर होते हैं।<br />
मलेरिया का बुखार के लिए शुद्ध शहद 20 ग्राम, सैंधानमक आधा ग्राम, हल्दी आधा ग्राम को पीसकर 80 ग्राम की मात्रा में गर्म पानी में डालकर रात को पीने से मलेरिया का बुखार और जुकाम ठीक हो जाता है।<br />
फेफड़ों के रोगों में शहद लाभदायक रहता है। श्वास में और फेफड़ों के रोगों में शहद अधिक प्रयोग करते हैं।<br />
दांतों का दर्द के लिए 1 चम्मच शहद में, लहसुन का रस 20 बूंद मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम चाटें। इससे पायरिया, मसूढ़ों की सूजन, दर्द, मुंह की दुर्गन्ध आदि खत्म होती है। मसूढ़ों में सूजन व खून निकलने के कारण दांत हिलने लगते हैं। शहद अथवा सरसों के तेल से कुल्ला करने से मसूढ़ों का रोग नष्ट हो जाता है।<br />
इन्फ्लुएन्जा के लिए शहद में पीपल का 1 चुटकी चूर्ण मिलाकर चाटने से आराम मिलता है।2 चम्मच शहद, 200 मिलीलीटर गर्म दूध, आधा चम्मच मीठा सोड़ा मिलाकर सुबह और शाम को पिलाने से इन्फ्लुएन्जा पसीना आकर ठीक हो जाता है।<br />
बच्चों के दांत निकलते समय मसूढ़ों पर शहद मलने से दांत निकलते समय दर्द में आराम रहता है।<br />
निमोनिया रोग में रोगी के शरीर की पाचन-क्रिया प्रभावित होती है इसलिए सीने तथा पसलियों पर शुद्ध शहद की मालिश करें और थोड़ा सा शहद गुनगुने पानी में डालकर रोगी को पिलाने से इस रोग में लाभ होता है।<br />
जीभ की प्रदाह और सूजन के लिए जीभ के रोग में शहद को घोलकर मुंह में भरकर रखने से जीभ के रोग में लाभ होता है।<br />
गर्भनिरोध के लिए चूहे की मींगनी शहद में मिलाकर योनि में रखने से गर्भ नहीं ठहरता है। शहद 250 ग्राम को हाथी की लीद (गोबर) का रस 250 मिलीलीटर की मात्रा में शहद के साथ ऋतु (माहवारी) होने के बाद स्त्रियों को सेवन कराने से गर्भधारण नहीं होता है।<br />
लाख के पानी में शहद मिलाकर पीने से खून की उल्टी होना रुक जाती है।<br />
मुंह के छाले के लिए नीलाथोथा लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग को भुन पीसकर 10 ग्राम शहद में मिलालें। इस मिश्रण को रूई से छालों पर लगायें तथा लार बाहर निकलने दें। मुंह की गंदगी लार के रूप में मुंह से बाहर निकाल कर छालों को ठीक करती है।<br />
गर्भावस्था में महिलाओं के शरीर में रक्त की कमी आ जाती है। गर्भावस्था के समय रक्त बढ़ाने वाली चीजों का अधिक सेवन करना चाहिए। महिलाओं को दो चम्मच शहद प्रतिदिन सेवन करने से रक्त की कमी नहीं होती है। इससे शारीरिक शक्ति बढ़ती है और बच्चा मोटा और ताजा होता है। गर्भवती महिला को गर्भधारण के शुरू से ही या अंतिम तीन महीनों में दूध और शहद पिलाने से बच्चा स्वस्थ और मोटा ताजा होता है।<br />
शहद में उंगली डूबोकर दिन में 3 बार चाटने से हिचकी से आराम मिलता है। शहद और काला नमक में नींबू का रस मिलाकर सेवन करने से हिचकी से आराम मिलता है। प्याज के रस में शहद मिलाकर चाटने से हिचकी बंद हो जाती है।<br />
कान का दर्द के लिए लगभग 3 ग्राम शहद, 6 मिलीलीटर अदरक का रस, 3 मिलीलीटर तिल का तेल और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग सेंधानमक को एक साथ मिलाकर इसकी थोड़ी सी बूंदे कान में डालकर उसके ऊपर से रूई लगा देने से कान से कम सुनाई देना, कान का दर्द, कान में अजीब-अजीब सी आवाजे सुनाई देना आदि रोग दूर हो जाते हैं। 5 मिलीलीटर सूरजमुखी के फूलों का रस, 5 ग्राम शहद, 5 मिलीलीटर तिल का तेल और 3 ग्राम नमक को मिलाकर कान में बूंद-बूंद करके कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।<br />
शहद में समुद्रफेन को घिसकर कान में डालने से बहरेपन का रोग ठीक हो जाता है।<br />
शहद और दूध मिलाकर पीने से धातु (वीर्य) की कमी दूर होती है। और शरीर बलवान होता है।<br />
शहद और नीम की गोंद को बराबर मात्रा में एक साथ मिलाकर कान में 2-2 बूंद डालने से कान मे से मवाद का बहना बंद हो जाता है।<br />
शहद की 3-4 बूंदे कान में डालने से कान का दर्द पूरी तरह से ठीक हो जाता है। कान को अच्छी तरह से साफ करके उसमे रसौत, शहद और और औरत के दूध को एक साथ मिलाकर 2-3 बूंदे रोजाना 3 बार कान में डालने से कान में से मवाद का बहना बंद हो जाता है।<br />
कान में कुछ पड़ जाना ...रूई की एक बत्ती बनाकर शहद में भिगो लें और कान में धीरे-धीरे से घुमायें। ऐसा करने से कान में जितने भी छोटे-मोटे कीड़े-मकोड़े होगें वो बत्ती के साथ चिपककर बाहर आ जायेंगे।<br />
पुराने से पुराने घाव में हरीतकी को पानी में पीसकर शहद के साथ मिलाकर लेप करने से घाव शीघ्र ही ठीक हो जाता है। शहद लगाने से घाव जल्द भरते है।<br />
कौआ गिरना ....4 से 6 ग्राम शहद को कालक का चूर्ण 1 से 3 ग्राम मिलाकर दिन में 2 बार लेने से रोग में लाभ होता है।<br />
पक्षाघात-लकवा-फालिस फेसियल, परालिसिस लगभग 20 से 25 दिन तक रोजाना लगभग 150 ग्राम शहद शुद्ध पानी में मिलाकर रोगी को देने से शरीर का लकवा ठीक हो जाता है। लगभग 28 मिलीलीटर पानी को उबालें और इस पानी के ठंडा होने पर उसमें दो चम्मच शहद डालकर पीड़ित व्यक्ति को पिलाने से कैल्शियम की मात्रा शरीर में उचित रूप में आ जाती है जोकि लकवे से पीड़ित भाग को ठीक करने में मददगार होती है।<br />
शहद में एक चुटकी अफीम मिलाकर और उसमें घिसकर चाटने से पेचिश के रोगी का रोग दूर हो जाता है।<br />
शहद और सेंधानमक को मिलाकर बत्ती बनायें। बत्ती को नासूर में रखने से भगन्दर रोग में आराम मिलता है।<br />
मोच के स्थान पर शहद और चूना मिलाकर हल्की मालिश करने से आराम होता है।<br />
स्त्री को गुनगुने गर्म पानी के टब में बैठायें तथा शहद में भिगोये हुए कपडे़ को योनि में रखे। इससे सर्दी का असर दूर हो जाता है और प्रसव हो जाता है।<br />
शहद को मुंह में भरकर कुछ देर तक रखकर कुल्ला करें। इससे तेज प्यास शांत हो जाती है। पानी में शहद या चीनी मिलाकर पीने से गले की जलन व प्यास मिट जाती है। 20 ग्राम शहद को मुंह में 10 मिनट तक रखें फिर कुल्ला कर दें। इससे अधिक तेज प्यास भी शांत हो जाती है।<br />
20 ग्राम शहद में 40 मिलीलीटर पानी डालकर उबालकर रख लें, फिर इस पानी को पिलाने से जलोदर की बीमारी में लाभ होता है। शहद और पीपल का चूर्ण छाछ में मिलाकर पीने से लाभ होगा।<br />
मासिक स्राव के लिए शहद के साथ कबूतर की बीट मिलाकर खाने से रजोदर्शन (माहवारी) होता है और बांझपन दूर हो जाता है।<br />
शीतपित्त के लिए केसर 6 ग्राम, शहद 25 ग्राम रोगी को सुबह-शाम खिलाने से शीतपित्त में लाभ मिलता है। एक चम्मच शहद और एक चम्मच त्रिफला मिलाकर सुबह-शाम खाने से भी लाभ होता है।<br />
मोटापा (स्थूलता) दूर करने के लिए 120 ग्राम से लेकर 240 ग्राम शहद को 100 से 200 मिलीलीटर गुनगुने पानी में मिलाकर दिन में 3 बार खुराक के रूप में सेवन करें।<br />
गिल्टी (ट्यूमर) के लिए चूना और शहद को अच्छी तरह से मिलाकर गिल्टी पर लगाने से रोग में आराम मिलता है।<br />
शहद का रोज दूध में मिलाकर सेवन करने से मोटापा बढ़ता हैं।<br />
शहद के साथ लगभग 1-2 ग्राम पोस्ता पीसकर इसको शहद में घोलकर रोजाना सोने से पहले रोगी को देने से अच्छी नींद आती है। इससे रोगी को आराम से नींद आ जाती है। शहद के साथ लगभग 3-9 ग्राम बहेड़ा के चूर्ण को रोगी को सुबह और शाम को सेवन करने से लाभ प्राप्त होता है।<br />
नींद ना आना (अनिद्रा) के लिए एक-एक चम्मच नींबू का रस और शहद को मिलाकर रात को सोने से पहले दो चम्मच पीने से नींद आ जाती है। जब नींद खुले तब दो चम्मच पुन: लेने पर नींद आ जाती है और यदि केवल पानी के गिलास में शहद की दो चम्मच डालकर पीने से नींद आ जाती है। शहद या शर्करा के शर्बत में पोस्तादाना को पीसकर इसको घोलकर सेवन करने से नींद अच्छी आती है।<br />
पेट के कीड़े के लिए दो चम्मच शहद को 250 मिलीलीटर पानी में डालकर दिन में दो बार सुबह और शाम पीने से लाभ होता है। थोड़ी मात्रा में सेवन करने से भी पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।<br />
आधासीसी (माइग्रेन) के लिए इस रोग में सूर्य उगने के साथ दर्द का बढ़ना और ढलने के साथ सिर दर्द का कम होना होता है, तो जिस ओर सिर में दर्द हो रहा हो उसके दूसरी ओर के नाक के नथुने में एक बूंद शहद डालने से सिर के दर्द में आराम मिलता है। रोजाना भोजन के समय दो चम्मच शहद लेते रहने से आधे सिर में दर्द व उससे होने वाली उल्टी आदि बंद हो जाती हैं।<br />
नाक के रोग के लिए शहद या गुड़ के साथ गूलर के पके हुए फल को खाने से नाक से खून आना बंद हो जाता है।<br />
शहद के साथ लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग 1 ग्राम सुहागे की खील (लावा) को चटाने से आक्षेप और मिर्गी में बहुत आराम आता है। शहद के साथ लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग जटामांसी का चूर्ण सुबह और शाम रोगी को देने से आक्षेप के दौरे ठीक हो जाते हैं।<br />
पेट में दर्द के लिए शहद का प्रयोग करने से खाना खाने के बाद होने वाले पेट दर्द समाप्त होते है। शहद और पानी मिलाकर पीने से पेट के दर्द में राहत मिलती है।<br />
तंग योनि को शिथिल करना ..10 ग्राम शहद को 5 ग्राम देशी घी में मिलाकर योनि पर लगाने से तंग योनि शिथिल होती है।<br />
शहद के साथ लगभग तीन ग्राम कलौंजी का सुबह के समय सेवन करने से भूलने की बीमारी दूर हो जाती है।<br />
शहद के साथ लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग चांदी की भस्म सुबह और शाम को लेने से बुद्धि के विकास में वृद्धि होती है।<br />
शहद और पीपल का पीसा हुआ चूर्ण छाछ के साथ पीने से छाती के दर्द में लाभ मिलता है।<br />
चिड़चिडापन और मन की उदासी के लिए शहद के साथ गुल्म कुठार की लगभग 1 या 2 गोलियां सुबह और शाम को देने से चिड़चिड़ा स्वभाव और मन की उदासी दूर हो जाती है।<br />
शहद में लगभग 3 ग्राम कलौंजी का चूर्ण मिलाकर चाटने से याददास्त तेज हो जाती है। लगभग 30 ग्राम शहद के साथ 20 ग्राम घी मिलाकर भोजन के बाद रोजाना लेने से दिमाग की याददास्त तेज होती है।<br />
सावधानियां :<br />
शहद को अग्नि (आग) पर कभी गरम नही करना चाहिए और न ही अधिक गर्म चीजें शहद में मिलानी चाहिए इससे शहद के गुण समाप्त हो जाते हैं। इसको हल्के गरम दूध या पानी में ही मिला कर सेवन करना चाहिए। तेल, घी, चिकने पदार्थ के साथ सममात्रा (समान मात्रा) में शहद मिलाने से जहर बन जाता है।<br />
यदि शहद से कोई हानि हो तो नींबू का सेवन करें। ऐसी स्थिति में नीबू का सेवन करना रोगों को दूर कर लाभ पहुंचाता है</div>
Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-59549858208145099632014-10-09T02:17:00.001-07:002014-10-09T02:23:31.857-07:00हर कोई वैद्य<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बड़ा अफ़सोसजनक बात हैं की आयुर्वेद चिकित्सा के नाम से यहा भारत में हर कोई चिकित्सक बना हुआ, इधर सुनी उधर सुनाई और हो गया इलाज, जिससे भ्रामक आयुर्वेद चिकित्सा के रूप में विकृति पैदा कर दी, शरीर के मानसिक और शारीरिक अध्ययन किये बिना ही अथवा बिना अनुसंधान के ही बातों का तिल का ताड़ बना दिया जाता हैं, जिससे भारतीय वैदिक चिकित्सा को जो स्थान आज मिलना चाहिए था उस स्थान को बाजार की आधुनिक दवा कंपनियों ने इलाज के नाम पर पाकेटमार बनी हुई हैं, दवा कंपनियों के निर्देशन में आज के आधुनिक डाक्टर अपनी चिकित्सा लय में हमेशा के रोगी को बाँध के रखते की ये दवाई जीवन भर खानी पड़ेगी, जब घाव ठीक हो जाता तो दवाई नहीं खाते परन्तु रक्तचाप की बीमारी बता कर हमेशा के लिए अपना ग्राहक बना देते हैं, जब की जीवन शैली की बीमारी होती, इस प्रकार की बीमारियों में दवा खाने की आवश्यकता ही नहीं होती, ये खान पान आदतों की बीमारी होती. स्वयं सेवन किये बिना ही जैसे तुलसी पत्र को सभी लोग प्रायोजित कर देते की पाच से पचास पत्ते रोज खाओ जो चिकित्सक कि नजर से गलत हो सकता हैं. क्योंकि पित्त प्रकोप में वर्जित होता हैं तुलसी पत्र, नारी के गुप्तांगो में अगर गर्मी है तो वो गर्मी को और अधिक बढ़ाए गी और नारी का जीवन और दुःख दाई हो जायेगा, और तुलसी पत्र के प्रति नफरत और भारतीय चिकित्सा से भरोसा उठ जाता हैं. चिकित्सा को अनुभवी चिकित्सक के दिशा निर्देश से ही प्रयोग करना चाहिएं. जिससे आप का रोग नष्ट हो कर एक अच्छा स्वास्थ्य मिल सके. <span style="font-family: arial; font-size: x-small;"> </span></div>
Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-30876130886032300872014-09-14T05:16:00.001-07:002014-09-14T05:16:07.931-07:00सगुण-निर्गुण <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पानी को अभी जानते और पानी होने का गुण भी सभी जानते जो सगुण शब्द से जाना जाता और पानी से बर्फ का बनना निर्गुण के रूप में जाना जाता हैं. इसी शब्द प्रक्रिया के रूपांतर जैसे पानी का बर्फ, और बर्फ का पानी बनना एक भौतिक क्रिया कहलाती हैं, ठीक इसी तरह दूध का दही बनना तो सम्मभ होता परन्तु दही का दूध बनना संभव नही होता जो एक रासायनिक क्रिया कहलाती, ठीक उसी तरह शब्दों का इस्तेमाल भी भौतिक क्रिया और रासायनिक क्रिया का प्रभाव हमारे जीवन में पड़ता हैं, कभी-कभी कुछ शब्द भी हमारे जीवन में दूध में शक्कर की तरह से समा जाते कभी-कभी कुछ शब्द दूध में खटास की भाती मिल जाने से दही रूप से फिर दूध नहीं बन सकता, इस लिए शब्दों को इस्तेमाल से पूर्व सोच विचार के ही बोलना चाहिए. </div>
Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-39523601360504390122014-09-07T06:14:00.001-07:002014-09-07T06:22:25.687-07:00तन-मन का मनोविज्ञान <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सगुण और निर्गुण<br />
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भारतीय वैदिक मनोयोग से जुड़ा आधुनिक मनोविज्ञान में सामजस्य ताल-मेल की कोशिशें नहीं की गयी. जब की वैदिक मनोविज्ञान ही बृह्म मनोविज्ञान हैं, आधुनिक की जननी ही वैदिक मनोविज्ञान हैं, आधुनिकतम में वैदिक सगुण और निर्गुण शब्दों को प्रकट और अप्रकट के रूप में लिखा जा सकता. किसी शब्द संज्ञा के अप्रकट के गुणों को पहचाना जा सकता जो अनुभवी होने से अनुमान प्रमाण तौर पूर्वाभास हो जाता अर्थार्त धुआँ होने से अनुमान लगाया जा सकता हैं की जिस स्थान पर धुआँ निकालने की अवस्थाओं में ये देख कर अनुमान लगाया जा सकता हैं की ये धुआँ इसी प्रकार से आगे आग लगाने को व्यवस्थित किया जा सकता हैं, अथवा आगे आग को लगाना अथवा बुझाना हैं, काठ [ लकड़ी ] में आग है जो निर्गुण हैं यानि अदृश्यता से हैं, गन्ना में रस, तिल में तेल, दूध में मलाई सगुण जो प्रत्यक्ष दीखता हैं. लकड़ी जल रही जिसमें आग दिखाई देती, गुलाब का फुल गुलाबी होता, परन्तु निर्गुण का प्रत्यक्षिकरण होता की गुलाब बगीचे में पैदावार होता हैं, कांटेदार टहनी होती हैं, गुलाब का इत्र बनाया जाता हैं, यानी एक सिक्के के दो पहलू होते हैं निर्गुण और सगुण - इसी प्रकार से मनोरोगी के रोग का इलाज किया जाता की दिखाई देने वाला और नहीं दिखाई देने वाला रोग जो शारीरिक के साथ मानसिकता जो परस्पर एक दुसरे को कितना प्रभावित करता हैं. </div>
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Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-70519903096868231932014-09-06T19:42:00.000-07:002014-09-06T19:42:00.787-07:00पेट में पथरी का दर्दपेट में पथरी का दर्द
पेट में पथरी से होने वाले दर्द को किस प्रकार से पहचान करे ! मनुष्य के जीवन में कई बार पेट दर्द की शिकायत होती जिसको पहचानना आवश्यक होता जिससे नैदानिक चिकित्सा से सुगमता हो सके, पेट दर्द के साथ साथ उल्टी होने की अवस्था के साथ मूत्र करते वक्त जलन के साथ मूत्र का उतरना कभी कभी किसी को बूंद बूंद मूत्र के साथ बार बार अपर्याप्त मूत्र का उतरना, बैचेनी होना निम्न दर्शाती चित्र को अवलोकन करे तो दर्दनाक स्थलों की समीक्षा की गई हैं. आप को पथरी हो सकती हैं, एक्सरे और सोनाग्राफी से पुष्टिकरण किया जा सकता हैं. Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-1416674833299270972014-09-02T07:10:00.000-07:002014-09-02T07:26:11.488-07:00पथरी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पथरी होना हमारे जीवनशैली का अंग होता, क्योंकि हमारा शरीर का विकास और वृद्धि कारण आहार की गुणवत्ता से के साथ-साथ हमारे जीने के अंदाज़ भी सहायक होता हैं. हमारे जीने के अंदाज़ में आहार के पोषक तत्वों के पचने और पचानें में भी भिन्नता पाई जाती, कुछ हमारे आहार में विरोधी पोषक तत्वों का भी संग्रह होना होता जिसमे पथरी भी वो एक हिस्सा हैं, जिसको यू भी समझा जाता की आहार के नकारात्मक प्रभाव का संग्रह होना ही पथरी बनने का कारण होता हैं.<br />
पथरी किसी कारणों से बनी हो उसका नैदानिक तरीका भी होता हैं, वैदिक जीवन या वैदिक चिकित्सा से पथरी का उपचार संभव होता हैं, आधुनिक चिकित्सा में शल्यचिकित्सा पर जोर दिया जाता परन्तु कुछ समय बाद में पथरी वापस हो जाती हैं, पथरी पित्ताश्मरी हो या गुर्दे की पथरी उपचार दोनों का संभव हैं, परन्तु आधुनिक भेड चाल में ऑपरेशन, ऑपरेशन के बावजूद फिर भी रोगी राहत नहीं, रोगी को वापस आहत ही मिलती हैं,<br />
<span style="color: red;">पित्ताश्मरी </span>-<br />
पित्ताश्मरी का आधुनिक चिकित्सा से शल्यचिकित्सा ही की जाती की पित्त की थैली को ही निकाल देते परन्तु मैं इस को गलत मानता हूँ, मैने देखा की किसी के आँख में मोतियाबिंद हैं और उस आँख को निकाल कर दूसरी बैठा देने से समस्या का समाधान मान कर शल्यचिकित्सा से आँख की पुतली को नया बैठा दिया, फिर भी नई आँख में भी वापस मोतियाबिंद शुरू हो गया जिसको आप इस<a href="http://dr.%20raghunath%20singh%20ranawat/" target="_blank"> https://www.youtube.com/watch?v=4jyNMuEu8nc</a> में देख सकते, जिस प्रकार से तपेदिक के मरीज़ को फेफड़ा में कफ की वृद्धि होने फेफड़ा नहीं निकला जाता हैं या बार-बार जुखाम होने से नाक को नहीं काटा जाता ठीक वैसे ही आप पित्ताशय को मत निकलवाइए, यथा योग्य चिकित्सक से परामर्श ले. अपनी आहार और जीवनशैली में बदलाव लायें जिसमें आप को एक अच्छा स्वास्थ्य मिले और जीवन को भरपूर ख़ुशी का जिए. <span style="color: purple;">जानिए आप का दर्द का स्थान निम्नलिखित 1 से 6 संख्याओं में तो नहीं, अगर हा हैं, तो निकटतम चिकित्सक से परामर्श करे. अन्यथा हमसे सम्पर्क करे ! </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; color: blue; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjsJ5U_26CvCNEBaK9fKFWJnEYXzEO2XofWY2y2q2tK-T43DbV28I2Zt9VDk8vSGMNaQsgQVt-GL23-HzU9OSpTp-atk-ra3YlI3UP6mxbDEcyJ44xZ3h9AYxELJxo6NjTQLGjCI78P2ho/s1600/contacat.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjsJ5U_26CvCNEBaK9fKFWJnEYXzEO2XofWY2y2q2tK-T43DbV28I2Zt9VDk8vSGMNaQsgQVt-GL23-HzU9OSpTp-atk-ra3YlI3UP6mxbDEcyJ44xZ3h9AYxELJxo6NjTQLGjCI78P2ho/s1600/contacat.jpg" height="240" width="320" /></a><span style="text-align: left;">समयावधि कम - समय मिलने पर अपडेट करूँगा . </span></div>
</div>
Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-91467731876736229512014-08-28T22:45:00.001-07:002014-08-28T22:45:28.456-07:00स्तन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
स्तन समस्या<br />
एक स्त्री के स्तन सुडौल और आकर्षक केवल प्रकृति की देन ही नहीं बल्कि अच्छे स्वास्थ्य की निशानी है.<br />
स्त्री की खूबसूरती को बढ़ाने में उसके सुन्दर, स्वस्थ और सुडौल स्तन बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण योगदान निभाते हैं. पुरुष भी सुडौल स्तन को पसंद करते हैं, स्त्रियों का बेडौल स्तन के कारण आकर्षक नहीं लगता. तो सुन्दरता समाप्त हो जाती है जिससे हिन् भावना आ जाती है.<br />
ज्यादातर स्तनों की समस्या स्वास्थ्य की खराबी या पोषण की कमी से पैदा होती है. नारी के स्तनों को सुन्दर बनाने के लिए सन्तुलित भोजन, व्यायाम तथा आराम के सन्तुलन से शरीर हितकारी होना चाहिए, पोषण की कमी या व्यायाम ना करने से स्तन बढ़ नहीं पाते या ज्यादा चर्बी वाले भोजन और व्यायाम की कमी से स्तन भारी और बेडौल हो जाते हैं. अपने भोजन करने की आदत मे सुधार करके और रोजाना व्यायाम करने से स्तनों को सुन्दर ओर सुडौल बनाया जा सकता है. महिलाओं में यौवनावस्था में समुचित विकास न होना, हार्मोन्स का असंतुलन, खाने में आवश्यक प्रोटीन्स की कमी, शारीरिक रूप से कमजोर होना, वक्ष का ढीलापन, गर्भधारण के पश्चात व बच्चों को स्तनपान कराने के बाद वक्ष सुडौल नहीं रहते, जिसके कारण महिलाओं में हीनभावना आ ही जाती है, एक से बढ़कर एक तकनीक महिलाऐं वक्षों को विकसित करने व सुडौल बनाने हेतु तरह-तरह के व्यायाम व तेलों की मालिश करनी चाहिए. जो महिलाऐं वक्षों को विकसित करने व सुडौल बनाने हेतु तरह-तरह के व्यायाम व तेलों की मालिश के साथ साथ इसके लिए संतुलित भोजन करने की आदत को ठीक करने में अपनी जीवन शैली में बदलाव लाकर सुडौल और आकर्षक अच्छा स्वस्थ बनया जा सकता हैं.<br />
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Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-61758449198658152702014-03-13T18:00:00.001-07:002014-03-13T18:00:21.580-07:00रोगों के कारण <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आधुनिक जीवनशैली में रोग जाने का नाम नही ले रहा, जिसकी वजह मनुष्य स्वयं ज़िम्मेदार होता हैं. हमारा शरीर का विकास और वृद्धि होने में हमारे आहार की भूमि का प्रमुखता का कारण होता, धरती पर किसी भी जीव-जन्तु का अपने भोजन पर निर्भरता होना सामान्यतया पाया जाता हैं, पर्यावरण और भौगोलिक स्थिति भिन्न भिन्न हो सकतीं परन्तु भोजन की निर्भरता अवश्यंभावी होती हैं. हमारे आहार में पोषक तत्वों की कमी या अतिरिक्तता होने से पोषक तत्वों में असंतुलित अवस्थाओ का पाया जाना ही रोगों का कारण होता हैं. जैसे - जोड़ों का दर्द, मोटापा, मधुमेह, हृदय रोग और गुप्त रोग इस प्रकार की बीमारियाँ मानव निर्मित अपने स्वयं द्वारा होती हैं, और उसमें सहयोगी अपने विचारधारा का प्रबल सहयोग होता जो स्वयं प्रेरित अथवा उन नकारात्मक पहलुओं को सकारात्मक व्यवसायी विचारधारा की पालनार्थ उन कीं बातों का जैसे अनुबधन कर लिया जाता हैं. जैसे किसी कंपनी से उत्पादित दवाइयों का सेवन हृदय रोग निवारणार्थ काम में लिया जाता हैं जो कोलेस्ट्रोल को कम करतीं हैं. यदि देखा जाए की कोलेस्ट्रोल बनता किससे है, तो सामान्य बात है की हमारे द्वारा लिया गया भोजन से जो पोषक तत्वों की अतिरिक्तता के कारण, यदि हम उन पोषक तत्वों को कम या बंद कर दे तो ठीक हो सकते हैं. </div>
Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-82092219934744054002014-02-27T05:56:00.001-08:002014-02-27T08:33:58.456-08:00गुणों के धर्म <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सत्व हल्का होता और प्रकाश वान हैं. इस कारण सत्व-प्रधान पदार्थ हलके होते है. जैसे हलकी [ हल्की ] होने से आग उपर की और जला करती हैं. वायु तिरछी चलती हैं, इन्द्रियां घोड़ों के वेग से चलती हैं, कारण की इन्द्रिया बलवंत होने से शीघ्रता से काम करती हैं. सत्व की प्रधानता से अग्नि में प्रकाश हैं. इसी प्रकार इंद्रिय और मन प्रकाशशील होते हैं. सत्व और तमस स्वयं अक्रिय हैं. इसलिए अपना अपना कम करने में असमर्थ हैं, रजस् क्रिया वाला होने से उसको उत्तेजना देता हैं और अपने काम में प्रवृत करता हैं. जब शरीर में रजस् प्रधान होता हैं, तब उत्तेजना और चंचलता बढ़ जाती है. रजस् गुण चल स्वभाव होने से हल्के सत्व को प्रवृत करता हैं. किंतु तमोगुण भारी होने से रजोगुण को रोकता हैं. जब शरीर में तमस् [ तमोगुण ] प्रधान होने से शरीर भारी होता और काम में प्रवृति नही होतीं . <br />
गुणों के परस्परं विरोधी होने पर भी सबका एक ही उद्देश्य हैं. सत्व [ सतोगुण ] हल्का हैं, तमस् स्वयं भारी जो स्थिर करता है. रजस् उत्तेजित करता है. इस प्रकार तीनो गुण परस्परं विरोधी हैं, किन्तु दीपक के सदृश्य इनकी प्रवृति एक ही प्रयोजन से है. जिस प्रकार बत्ती और तेल अग्नि से विरोधी होते हुए भी अग्नि से विरोधी होते हुए भी अग्नि के साथ मिले हुए प्रकार का सिद्ध करते है. इसी प्रकार सत्व, रजस्, और तमस् परस्परविरोधी होते हुए भी एक दुसरे के अनुकूल कार्य करते है. </div>
Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-38663262310775929982014-02-22T20:01:00.000-08:002014-02-22T20:01:05.093-08:00परिणाम <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
गुणों का परिणाम <div>
जिस जिस विकृति का प्रत्यक्ष होता जाता हैं उस प्रत्यक्ष से उसकी प्रकृति का अनुमान किया जाता हैं. और वो शब्द वेद [ ज्ञान ] हो जाता हैं. [ इस प्रकार प्रत्यक्ष, अनुमान, और ज्ञान तीनों प्रमाण हो जाते हैं ]</div>
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चेतन -तत्व कूटस्थ नित्य हैं और जड-तत्व गुण परिणामी नित्य हैं. जो एक क्षण भी बिना परिणाम नही रहता परिणाम का लक्ष्ण एक धर्म को छोड़ कर दूसरा धर्म धारण करता हैं. परिणाम दो प्रकार का होता है. एक स्वरूप अर्थात सदृश्य परिणाम; दूसरा विरूप अर्थात विसदृश्य परिणाम. जिस प्रकार दूध दूध की अवस्था में ही रहने का परिणाम होता हैं. तब भी उसके परमाणु स्थिर नही रहते, चलते ही रहते हैं; इस अवस्था में दूध में दूध बने रहने का परिणाम हो रहा है. यह सदृश्य अर्थात स्वरूप परिणाम हैं. दूध में जामन पड़ने के बाद जब दही बनने का परिणाम होता हैं. अथवा एक निश्चित समय के पश्चात जब दूध में दूध के बिगड़ने का यानि खट्टा होने का परिणाम होता है. तब वह विरूप अर्थात विसदृश्य परिणाम है. विरूप अर्थात विसदृश्य परिणाम तो प्रत्यक्ष होता हैं, किंतु उस प्रत्यक्ष से स्वरूप अर्थात सदृश्य परिणाम अनुमान से जाना जाता है. इसी प्रकार से तीनों गुणों का अलग अलग अपने सरूपों तीनों प्रकृति सतगुण, रजोगुण,और तमोगुण स्वंय में प्रवृत होते तो सदृश्य परिणाम होता हैं. इसी को मूल प्रकृति, प्रधान, अव्यक्त कहते है. जो सभी जड़ों का मूल कारण है. जब तीनों जड तत्व इक्कठा होकर एक दूसरे को दबाकर परिणाम में प्रवृत होते है तो वह विरूप परिणाम होते हैं. इन गुणों को विषम परिणाम कहते हैं . </div>
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Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-80864763820206318262014-02-22T03:23:00.001-08:002014-02-22T03:26:59.927-08:00आप की प्रकृति <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मानव और तत्व की प्रकृति तीन प्रकार की होती हैं,<br />
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1. सतोगुणी = प्रकाशक और हल्का माना गया हैं, हल्कापन, प्रीति, तितिक्षा, संतोष, प्रकाश के साथ उदय होते हैं. </div>
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2. रजोगुण = उत्तेजक और चल माना गया हैं, सुख-दुःख, चंचलता, उत्तेजना के साथ उदय होता हैं </div>
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3. तमोगुण = भारी और रोकने वाला माना गया है. मोह, आलस, निंद्रा, भारीपन के साथ उदय होते हैं . </div>
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1. सत्व या सतोगुण धारक या प्रकृति का मानव के गुण हल्का और प्रकाशक होता हैं, इस लिए सतोगुणी पदार्थ हो या इन्सान सभी प्रकाशक होते हैं. आग इसलिए उपर जला करती क्योंकि वो हलकी होती है. सतोगुणी तत्व की प्रधानता होने से अग्नि में प्रकाश होता हैं. इसी प्रकार इंद्रिय और मन प्रकाशशील होते हैं. सतोगुण और तमो गुण स्वयं अक्रिय हैं. इसलिए ये अपना कार्य करने में ये असमर्थ हैं. रजस [ राजस , रजोगुण ] क्रियाशील होने से उन दोनों गुणों को उत्तेजना देता हैं और अपने कार्य [ काम ] में प्रवृत करता हैं. जब मानव शरीर में रजोगुण अधिक होने से उत्तेजना और चंचलता बढ़ा जाती हैं. और रजोगुण चंचल स्वभाव होने से हलके सतोगुण को प्रवृत करता हैं. परन्तु जब तमोगुण भारी होने से रजोगुण को रोकता हैं. जब शरीर तमोगुण प्रधान होता हैं तो शरीर भारी, और काम [ कार्य ] में प्रवृत नही होता हैं. </div>
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Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-48929531613298251312014-02-20T19:23:00.001-08:002014-02-21T05:11:25.382-08:00प्रमाण <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
प्रमाण<br />
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प्रमाण तीन प्रकार के होते है, 1.प्रत्यक्ष प्रमाण, 2. अनुमान प्रमाण, 3.शब्द प्रमाण </div>
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किसी तत्व को या किसी अर्थ को हमने अभी तक नही जाना, जो पहले नही जाना हुआ निश्यात्मक ज्ञान, "प्रमा" कहलाता हैं. आत्मा या बुद्धि एक या दोनों इन का "प्रमा" सर्वश्रेष्ठ साधन, जो उत्पन्न होने से प्रमाण हो प्रमाण कहा जाता हैं. इन तीन प्रमाणों से सभी प्रकार की सिद्धया प्राप्त हो जाती हैं.<br />
1. प्रत्यक्ष प्रमाण - जो प्रमाण होता वो आप के सामने हैं जैसा भी सोना अथवा पीतल, स्वस्थ्य या बीमार, या दिन या रात <br />
2. अनुमान प्रमाण - आप किसी भी तत्व का अनुमान लगा कर सकते की जैसे कही धुआँ उठ रहा तो वहां आग होने का अनुमान प्रमाण जान सकते, क्रोध या हँसमुख चेहरे से दिल की बात और बादलों को देख कर वर्षा होने या नही होने का अनुमान प्रमाण बता सकते .<br />
3. शब्द प्रमाण - चित्त की वृत्तिया के शब्दों को प्रमाण माना जाता हैं. जैसे एक युवक किसी सुंदरी का रूप [ सुन्दर युवती ] को देखता तो मोह सुख-दुःख का भेद से, उसी सुंदरी को कोई कुत्ता देखता तो माँस का पिंड जो उस को काट सकता है, अर्थार्त प्रमाणों में भी भ्रम और सच का जानना जरूरी होता है. </div>
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Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-77923942118548455522014-02-13T02:00:00.000-08:002014-02-13T02:00:29.230-08:00अज्ञान <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अज्ञान<br />
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अज्ञान ही इन चार क्लेशों का मूल कारण होता हैं [ राग, द्वेष, अस्मिता, और अभिनिवेश ] अस्मिता से चार अवस्था उत्पन्न होती हैं. प्रसुप्त, तनु, विच्छिन और उदार ये चारों अवस्था अज्ञान ही हैं.</div>
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1. प्रसुप्त - इस प्रकार का क्लेश चित में स्थिर रहकर भी अपना कार्य सम्पादित नही कर पता. जैसे मनुष्य की बाल्यकाल में विषय भोगों की वासनाएँ बीज रूप में होते हुए भी दबी रहती हैं. तथा जब बाल अवस्था से युवावस्था होते ही सभी वासना सक्रिय हो जाती वैसे ही प्रलय काल में एवं सुषुप्ति की अवस्था में अस्मिता आदि चारों क्लेशो की प्रसुप्तावस्था बनी रहती हैं. </div>
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2. तनु - उन क्लेशों को कर्म योग की शक्ति से रहित कर दिया जाता, परन्तु उनकी वासनाएँ बीज के समान रूप में चित्त में निरंतर विधमान रहती हैं.इस समय मनुष्य कर्म नही करके शांत रहते [ इस प्रकार के क्लेशो को दूर करने के लिए ध्यान, धारणा, ममता, का परित्याग और वास्तविकता का ज्ञान से दूर किया जा सकता हैं.] </div>
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3. विच्छिन्न - अस्मिता में से किसी क्लेश के शक्ति मान या उदार होने से एक क्लेश दूसरे क्लेश को दबा जाता हैं. </div>
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4. उदार - उदार अवस्था में क्लेश सभी सहयोगी विषय भोग को प्राप्त करके अपना कार्य को क्रमबद्ध करता हैं. [ अविध्या का अपना कोई अवस्था भेद नही होता हैं.] </div>
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Raghunath Singh Ranawathttp://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-676569251359150384.post-31113908675292320112014-01-27T21:39:00.000-08:002014-01-27T21:39:55.478-08:00असफलताओं के कारण <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<span style="color: blue; font-family: Mangal, serif;">जिसने की शर्म उसके फूटे कर्म</span></div>
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<span style="font-family: Mangal, serif;">शर्माना स्त्रियोचित होता होता हैं, शर्म स्त्रियों का गहना होता हैं, शर्म स्त्रियों को शोभा देता हैं. जहा शर्म की बात मर्दों के लिए हो तो उस के लिए भारतीय कहावत हैं की जिसने की शर्म उसके फूटे कर्म. शर्म या शर्माना के पीछे एक भय बैठा होता हैं जो मनोविज्ञान कारणों से पाया जाता हैं. एक सिक्के के दो पहलू होते जिसमें एक तरफ़ा शर्म तो दूसरी तरफ भय बना होता हैं. इस प्रकार से भय युक्त शर्म के कारण अपनी प्रगतिशील अवस्थाओं बाधा आती जिसमें अपने जीवनी शक्ति को उपयोग नही बना सकता हैं - जैसे मैथुनरत हो या किसी आँफिस का इंटरव्यू अथवा प्रतियोगिताओं का चयनित अवसरों में अनुतीर्ण होने का खतरा हमेशा बना रहता हैं. आप अगर इस प्रकार से पीड़ितों में हो तो आप हम से ईमेल से निदानात्मक उपचार लें सकते हैं. </span></div>
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