होम्योपैथ चिकित्सा

होम्योपैथ
  होम्योपैथी चिकित्सा व्यवहार – होम्योपैथी चिकित्सा मात्र बहुव्यापी नही होकर ,सर्वव्यापी चिकित्सा होती है .यह समस्त पदार्थों की क्रिया की जाँच करती हैं.की वे सभी खाद्य पदार्थ हो या पेय पदार्थ मिठाई,नमकीन, तैलीय ,विष ,और जीवन जीने की शैली यह इन की किया की जाँच स्वस्थ, बीमार पौधों और पशुओं पर करती हैं. सभी तत्वों की जाँच करना इनका सिद्धांत होता है. जिन औषधियों का सिद्धिकरण हुआ उनकी व्यवहार में लाने के रोगों के नामांकरण की आवश्यकता होती हैं क्यों की उसका उपयोग उन लक्षणों के आधार पर नही किया जा सकता .जो रोग साधक औषधियों के चुनाव का वैधानिक रूप से मार्गदर्शन करती हैं .
मैं मानता हुं की औषधियों की संख्या में वृद्धि किये जाने के बारे में अनेक मत भेद हैं अर्थात जीने बारे में भ्रामक विचारधाराओं को अनुसंधानकर्ताओं के उपयोगिताओं के ज्ञान की विश्वस्त सूत्र की प्राप्ति हो .ताकि भविष्य में उनका सिद्धिकरण  कर उन की उपयोगिता खोजी जा सके और रोग मुक्ति कारक औषधियों की संख्या की उतरोतर वृद्धि हो . 
 होम्योपैथ चिकित्सा जीवनी शक्ति = जीवनी शक्ति अपने को मानसिक लक्षणों द्वारा प्रकट करती हैं, जीवनी शक्ति से मनुष्य बनता हैं और जीवनी शक्ति का प्रथम-प्रकाश मानसिक लक्षणों से होता हैं, लोमड़ी सी धूर्तता टेरेंटूला,आत्म घात के विचार ओरम ,तथा चायना का , हरेक बात में नुकताचीनी और यू नहीं की-सी तबियत आर्सनिक का , मृत्यु की आशंका एपीस का मृत्यु का, भयंकर भय एकोनाईट का , मृदुल स्वभाव के साथ रोते रहना पल्सेटिला का, गंदगी पसंद करना और आध्यात्मिक बातो की चर्चा करते रहना सल्फर का मानसिक लक्षण हैं, शक्ति रोगी अपनी बीमारी में या तकलीफ़ में मैं शब्द का प्रयोग ज्यादातर करता हैं , तब अपने आप सर्वांग को ,जीवनी शक्ति के बारे में कह रहा होता हैं . मेरा काम करने में जी नही लगता, मैं ठंड सहन नही कर सकता , मैं गर्मी पसंद करता हूँ, मैं अंधेरे से गबराता हूँ , मैं उजाला पसंद करता हूँ , मैं अकेला नही रहा सकता, ठंड में रजाई से मैं हाथ नही निकल सकता, आवाज़ या बिजली कडक से परेशान हो जाता हूँ इस प्रकार से रोगी मैं, मैं, मैं का प्रयोग करता हैं, तब वह अपने निजी किसी अंग के विषय में नही कह रहा होता बल्कि संपूर्ण अंग विषय में अपनी जीवनी शक्ति के विषय में कह रहा होता हैं. इस प्रकार से उत्कट इच्छा तथा उत्कट घृणा भी प्रकट करता हैं . हमारी जीवनी शक्ति =  हमारी जीवनी-शक्ति को अपनी भाषा में प्राण कहते हैं ,प्राय भगवान के तस्वीरों के चेहरे के आस-पास जो आभा मंडल दिखाया जाता हैं वह संभवत उनकी शक्तिशाली जीवनी-शक्ति का प्रतीक हो सकता हैं 
          हम सबका मूल जीवनी-शक्ति में निहित हैं हमारे हाथ पाव का हिलना , वृक्ष का उगना,आकाश में बिजली का चमकना  इस क्रिया के पीछे स्थित अदृश्य शक्ति को ही जीवनी-शक्ति कहते हैं .
         शरीर की विभिन्न क्रियाओं रक्त-परिभ्रमण भोजन का पाचन ,पसीना, मल-मूत्र का त्याग आदि सभी प्रकार से बालक में से वृद्ध , वृद्धि और क्षय के क्रम में बीज से अंकुरण, फुल और फल के विकास-विनाश के क्रम जो रूपांतर हमें दिखाई देता उस के पीछे जीवनी-शक्ति का होना पाया जाता हैं .      
  होम्योपैथ में चिकित्सा व्यवहार = होम्योपैथ में दो संप्रदाय हैं , एक संप्रदाय निम्न शक्ति देने वाले को वो 3x  , 6 x से उपर दवा नही देते क्योंकि वे समझते हैं की इससे उपर की शक्ति की दवा काम नही करती क्यों की दवा में दवा ही नही होती .
               दूसरा संप्रदाय उच्च शक्ति की दवा देने वालो का है .वे 30 x ,2000 ,से कम देते ही नही क्योंकि उनका कहना हैं की होम्योपैथ दवा का रूप स्थूल दवा नही हैं, यह तो दवा के भीतर छिपी शक्ति हैं, जैसे चुंबक में छिपी रचनात्मक या विध्वसंक शक्ति . होम्योपैथिक दवाई में हम दवा नहीं दे रहे होते ,रोगी के माध्यम से एक शक्ति का संचार कर रहे होते .होम्योपैथिक दवाई शरीर में एक शक्ति ,एक लहर उत्पन्न करती हैं , और वही शरीर को निरोगी बनाती हैं .
              डा. केंट का कहना हैं की होम्योपैथ को समझ रखना चाहिए की जब वह उच्च शक्ति की दवा प्रयोग कर रहा होता तब छुर्रे की धार से खेल रहा होता हैं .

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