नपुसंकता = भागवत गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते है की हे अर्जुन नपुसंकता को मत प्राप्त हो ,तुज में यह उचित नही जान पड़ती .हे परन्तु ,हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर युद्ध के लिए खड़ा हो जा .यह उपदेश गीता के दूसरे अध्याय में सुनाया इस बात में गहराई से अनुसंधान देखा जाते तो मालूम होता है की इस युद्ध भूमि से पहले अर्जुन एक ब्रह्न्ला नारी के रूप में अज्ञात वास एक वर्ष का निकला था जिस के कारण महिलाओ में बैठने से सभी लक्षण पुरुष के मिट गए थे और सभी महिलाओं वाले आचरण आ गए थे .आज भी अगर देखा जाने से आप को अलग बगल जो पुरुष महिलाओ में अधिक बैठक करता उस में महिलाओ जैसे लक्षण पैदा हो ही जाते है और उन लोगो हो बातचीत और व्यवहारिक लक्षण को देखकर उप नामों से पुकारते भी है . परन्तु यानि हल्का ,कमजोर या निर्बल लक्ष्य या तप .हृदय की दुर्बलता महिलाओ की कमजोर होती है क्योंकि शारीरिक तुलनात्मक अध्ययन किया जाने पर भी मालूम होता औसत वसा के तन्तु पुरुष में कम पाए जाते है और जिस पुरुष में वसा की मात्रा ज्यादा होती उनका हृदय ज्यादा धड़कता ,भय ज्यादा सताता ,शिकायतें ज्यादा करते ,आत्म विश्वास कमजोर पड़ जाता ,सुनने की क्षमता कमजोर तथा बोलनें की आदत ज्यादा पड जाती .और इस प्रकार आदमी नपुसंकता को प्राप्त करता है ,
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