सोमवार, 6 मई 2013

एक भ्रम की नाडी ब्राहमण जाती पर प्रभावी को माना जाता, जो व्यापक अधूरा ज्ञान हैं.

नाडी [ शिरा ] दोष भारतीय ज्ञान-विज्ञान का समावेश 

भारतीय वैदिक परम्पराओं को आधुनिक वैज्ञानिक शोधकर्ताओं ने भी नाडी दोष को सत्य साबित किया .
भारतीय वैदिक शास्त्रों में लिखा जिसको आयुर्वेदिक शास्त्रों तथा ज्योतिष शास्त्रों के अनुसंधानकर्ताओं पुनः प्रकाशित किया जो आज मान्य होते है .

नाडी 

नाडी = शिरा ,धमनिया में रक्त प्रवाह में वात, पित, कफ के संतुलन में असंतुलन नही हो का ध्यान पूर्वक अध्ययन नाडी दोष से बचाव करता हैं .
चिकित्सा की दृष्टि से मनुष्य आध्यात्मिकता ,ज्योतिषी एवं सामाजिकता में पारिवारिक मूल्यांकनों का समावेश रहता है .जिसका भावी दाम्पत्य जीवन का गुण मेल-मिलाप में नाडी दोष का के कारण का निवारण देखा जाता हैं . भावी दाम्पत्य जीवन के मध्य सामजस्य ,प्रेम ,सुखी जीवन ,अपनी जीवनशैली में वंशवृद्धि जो अपनी कुल की परम्पराओं को बढ़ाने वाली ,आय,समृद्धि और यश कीर्ति वान संतान की प्राप्ति देते पितृ कर्ज से मुक्त वो सन्तान समाज के साथ अपना उत्थान करे .
चिकित्सा की दृष्टि से नाडी की गति तीन मानी जाती है जो उसकी चाल को कहते . आदि , मध्य और अंत .जो आदि = वात, मध्य=पित्त और अंत=कफ मानी जाती हैं जो शारीरिक धातु के रूप में जानी जाती है .इस लिए वैध जातक को वातिक को वायु,गैस उत्पन्न करनेवाले भोजन की मना करते हैं.पेत्तिक को पित्त वर्धक और कफज को कफ वर्धक भोजन का मना किया जाता हैं . शरीर में इन तीनों के समन्वय बिगाड़ने से रोग पैदा होता हैं.
 परन्तु ज्योतिषी की भाषा में नाडीयां [ शिरा ] तीन होती हैं .आदि ,मध्य ,अंत .इन नाडीयो के वर-कन्या से सामान होने से दोष माना जाता हैं . समान नाडी होने से पारस्परिक विकर्षण पैदा होता हैं मानसिक रोग पैदा होता हैं.. और असमान ना डी होने से आकर्षण के साथ मानसिक रोग मुक्त होता हैं. 
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में ना दी का निर्धारण जन्म नक्षत्र से होता हैं.हर एक नक्षत्र में चार चरण होते हैं.नौ नक्षत्र की एक नाड़ी होती हैं.जन्म नक्षत्र के आधार पर नाडीयों को टी भागों में विभाजित किया जाता हैं.जो आदि ,मध्य,अंत ( वात,पित्त,कफ ) नाड़ी के नाम से जाना जाता हैं. 
अष्ट कूट गुण मिलन में 36 गुणों को निर्धारण किया जाता हैं. वर्ण,वश्य,तारा,योनी,ग्रह मैत्री ,गण ,भकूट,और नाडी के लिए 1+2+3+4+5+6+7+8 = 36 गुण .भावी दंपत्ति के मानसिकता एवं मनोदशा का मूल्याङ्कन किया जाता हैं.ना डी दोष भावी वर वधु के समान ना दी होने से ना दी दोष होता है जिस के कारण विवाह में निषेध माना जाता हैं.
नाडी दोष ब्राह्मण वर्ण की राशियों में जन्मे जातको पर विशेष प्रभावी नही होता 
[ एक भ्रम की नाडी ब्राहमण जाती पर प्रभावी को माना जाता जो व्यापक अधूरा ज्ञान हैं.]
ज्योतिष शास्त्र में सभी राशियों को चार वर्णों में विभाजित किया गया हैं.
ब्राहमण वर्ण   =  कर्क,वृश्चिक,मीन 
क्षत्रिय वर्ण     =  मेष ,सिह,धनु,
बैश्य  वर्ण      =  वृष,कन्या,मकर.
शुद्र  वर्ण        = मिथुन,तुला,कुम्भ.
आदि नाडी = अश्विनी ,आद्रा ,पुर्नवसु, उत्तराफाल्गुनी , हस्त,ज्येष्ठा,मूल,शतभिषा,पूर्वाभाद्रपद.
मध्य नाडी = भरनी,मृगशिर,पुष्य,पूर्वाफाल्गुनी,चित्रा,अनुराधा,पूर्वाषाढ़,घनिष्ठा,उत्तराभाद्रपद,
अत्य  नाडी = कृतिका,रोहिणी,आश्लेषा,मघा,स्वाति,विशाखा,उत्तराषाढा, श्रवण,और रेवती.     
नाडी दोष निवारण [ परिहार ] = मांगलिक कन्या को समंदोश वाले वर का दोष नही लगता 
यदि कन्या के जो मंगल होवे और वर के उपरोक्त स्थानों में मंगल के बदले में शनी,सूर्य,राहू,केतु होवे तो मंगल का दोष दूर करता हैं पाप क्रांत शुक्र तथा सप्तम भाव पति को नेष्ट स्थिति भी मंगल तुल्य ही समजना चाहिए 
* पगड़ी मंगल चुनडी मंगल जिस वर या कन्या के जन्म कुंडली में लग्न से या चन्द्र से तथा वर के शुक्र से भी 1 - 4 -7 - 8- 12 स्थान भावो में मंगल होवे तो मांगलिक गुणधर्म की कुण्डली समझें.अधिक जानकारीपूर्ण अपने निकट ज्योतिष से सम्पर्क करे .    

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