मीराबाई

जय एकलिंगनाथ जी की

मीराबाई (1504- 1558) कृष्ण-भक्ति रस शाखा की प्रमुख मनोविज्ञानी थी. उनका जन्म 1504 ईस्वी में जोधपुर के पास मेड्ता ग्राम मे हुआ था, कुड्की में मीरा बाई का ननिहाल था. उनके पिता का नाम श्री मान रत्नसिंह था. उनके पति राज कुंवर भोजराज उदयपुर के श्रीमान महाराणा सांगा के पुत्र थे. विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति श्री मान भोजराज का देहान्त हो गया. वे संसार की ओर से विरक्त हो गयी और साधु-संतों की संगति में हरि कीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं. कुछ समय बाद उन्होंने ससुराल का त्याग कर दिया और तीर्थाटन को निकल गईं. वे बहुत दिनों तक वृन्दावन में रहीं और फिर द्वारिका चली गईं. जहाँ संवत 1558  ईस्वी में वो भगवान कृष्ण कि मूर्ति मे समा गई.

आधुनिक युग में मीराबाई के उसकी देह, काया, शरीर को कोई सुख की कामना नहीं की अपने देह को कभी सजाने सवारने की कोशिश नहीं की, अल्प आयु की भरी जवानी में अपने जीवन साथी के स्वर्गीय होने पर विधवा जीवन को भगवान कृष्ण की भक्ति में रमा दिया, [ इस प्रकार से उच्च कुलीन राजपूतो में विधवा विवाह नहीं होता हैं. सीता माता की तरह विरहन जीवन एक पति के कामना ही संतुष्ट होती ]

मीराबाई में आत्म ज्ञान की और बढ़ना शुरू कर दिया. जिससे वो महान तो हुई परन्तु को कुलो को कभी नीचा नहीं दिखाया, दुःख को स्वीकार किया. दुःख दूर करने के लिए किसी झाड़ू-फुक, औझा या तांत्रिकों का सहारा नहीं लिया, कभी नकली बाबाओ के सामने रोना नहीं रोया, सुख-दुःख को समदरसी देखा. सत्य और भ्रम को जाना. इस संसार में जो कुछ सुख आनंद हैं, वो बाहर नहीं अपने भीतर हैं. किस तरह से मछली पानी में रहकर भी प्यासी रहती तो इस बात निम्न प्रकार से गाती हैं.  
     
पानी में मीन प्यासी, मोहे सुन सुन आवत हांसी.
आत्मज्ञान बिन नर भटकत है, कहां मथुरा काशी.
भवसागर सब हार भरा है, धुंडत फिरत उदासी.
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर, सहज मिळे अविनाशी.

सुवा से सुवा जाण सोने रो पिन्जरियो घडायो रे क्रमश रे प्रताप सु कागो निकल आयो रे
 मीरा बाई का मनोविज्ञान ये कहता की इन्सान भ्रम में अपने कर्म करता और फिर पछताता हैं, जिस काम को सुवा यानि तोता समझ कर पिंजरे का निर्माण कर लिया और कर्म फल में तोता की बजाय वो तो कागा [ कौआ ]
 निकल आता क्योंकि तोता राम राम बोलना जानता तोता के पंख और चौच होती ठीक उसी तरह से  कौआ के भी पंख और चौच होती  परन्तु वो राम राम नहीं बोल सकता.

मतलब उन का कहना जिस पीतल को सोना समझ रहे हो वो सोना नहीं पीतल होता हैं.

परिवार की सहायता भक्ति मार्ग दर्शन के लिए महाराणा में चित्तोडगढ में मीराबाई के लिए कृष्ण मन्दिर का निर्माण भी करवाया



 मीराबाई ने चार ग्रंथों की रचना की--

नरसी का मायरा
गीत गोविंद टीका
राग गोविंद
राग सोरठ के पद
इसके अलावा मीराबाई के गीतों का संकलन "मीरांबाई की पदावली' नामक ग्रन्थ में किया गया है.



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें