गुप्त रोग 1


 गुप्त रोग =  गुप्त रोग के नाम से कोई बड़ी बीमारी नही होती सिर्फ यह हो मात्र शर्म के जो भाव होते उसका विकास ज्यादा होने से आत्म बल कमजोर हो जाता और कमजोर आत्मबल वाले किसी से अपनी बात बताने में अति विचारों के कारण निर्णय लेने में देरी करते करते एक अभ्यास हो जाता है .जो मन की बात मन से नही निकलती और वैसे तडपते जैसे जल बिन मछली
गुप्त रोग के कारण अपने हृदय की धड़कन बढ़ जाती हैं, सर्दी-जुखामहमेशा बना रहता हैं , मनो दैहिक पीड़ा होती जो किसी को कही नही जाती और सही भी नही जाती . मैथुन क्रिया के समय
शीघ्र पतन 
  नैदानिक चिकित्सा में रति क्रिया [ संभोग, समागम, अन्योन्य संसर्ग, मेल-जोल ] के मामले में यह शब्द वीर्य पात या वीर्य स्खलन के प्रयोग के लिए किया जाता हैं. पुरुष की इच्छा के विरुद्ध स्त्री सह वास करते समय उसका वीर्य अचानक स्खलित [ वीर्य पात ] हो जाते जिसको पुरुष चाह कर भी नही रोक [ स्तम्भ ] पाता. .स्त्री-पुरुष के समागम,की शुरुआत में ही वीर्य पात से स्त्री को संतुष्टि और तृप्तिदायक अवस्था की प्राप्त नही होती उस अवस्था को वीर्य स्खलित हो जाना या निकल जाना, इसे शीघ्र पतन होना कहते हैं. इस व्याधि का संबंध स्त्री से नहीं होता, पुरुष से ही होता है और यह व्याधि सिर्फ पुरुष को ही होता हैं .शीघ्र पतन की सबसे खराब स्थिति यह होती है कि सम्भोग क्रिया शुरू होते ही या होने से पहले ही वीर्य पात हो जाता है. काल से पहले वीर्य का स्खलित हो जाना शीघ्र पतन है. यह “अवधि ” कोई निश्चित समय नहीं है पर जब “शुरुआत ” के साथ ही “अंत” होने लगे या स्त्री-पुरुष अभी चरम पर न हो और स्खलन हो जाए तो यह शीघ्र पतन (Premature Ejaculation) है। ऐसे में संतुष्टि, ग्लानी, हीन-भावना, नकारात्मक विचारों का आना एवं अपने पत्नी के साथ संबंधों में तनाव आना वाजिब है. स्त्री-पुरुष दोनों की यह अवस्था ख़राब होती और इस वेदना को किसी को बताया नही जाता इस समय, रहा भी नही जाता और सहा भी नही जाता. सम्भोग की समयावधि कितनी होनी चाहिए यानी कितनी देर तक वीर्य पात नहीं होना चाहिए, इसका कोई निश्चित मापदंड नहीं है. यह प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक एवं शारीरिक स्थिति पर निर्भर होता है.सम्भोग के शुरू होने से 1 मिनट के भीतर ही अगर किसी पुरूष का वीर्य-स्खलन हो जाता है तो इसे शीघ्र-पतन ( premature ejaculation) कहा जायेगा. रति क्रिया कितनी देर तक होनी चाहिए यह बात हर व्यक्ति के शारीरिक व् मानसिक क्षमता पर निर्भर करती हैं . पेट मै हमेसा गैस, कब्ज बनी रहती है.
बचपन से हस्तमैथुन की आदत पड़ जाती है, आँखो के नीचे काल घेरे पड़ जाते है अण्ड़कोष तो नीचे झुककर लटकने लगे है. लिँग मेँ उतेजना नही आती है कभी कभार आ भी जाती है तो लिँग ढीला रहता है और सामान्य अवस्था से बिल्कुल बच्चो जितना पतला सकुड़ जाता है शरीर बहुत कमजोर हो जाता है हमेशा सिर दर्द रहता है, अण्ड़कोष भी नीचे झुके लटक जाता है. किसी काम मेँ मन नही लगता हमेशा भय बना रहता है, कभी कभी आत्महत्या करने का विचार आता है मगर फिर भी जीने की तमन्ना होती है . बहुत पैसे बहा चुका होया हैं, नीम हकीमोँ से कोई फायदा नही हुआ होता लगता हैं. पेशाब करते समय शर्म आती हैं और ऐसा लगता हैं कि मुझे अब सभी मुझे हँसते हुये शँका की दृष्टि से देखते है ,
लिँग छोटा, टेढ़ा ,बीच मेँ मुड़ा हुआ लगता है वीर्य पतला पड़ जाता इस प्रकार से शर्म का जीवन जीना पड़ता हैं .
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कारण = भय , डर , चिंता ,छुप कर संभोग जैसे हस्त-मैथुन के साथ शारीरिक व् मानसिक परेशानियों का भी कारणों का पाया जाता हैं,.डरिये मत पहले अपनी शर्म को दूर की जिये.
एस टी डी के लक्षण

पुरूषों मे तो रतिरोगों के लक्षण सामान्यतः दिख जाते हैं तो वो  चेतन  हो जाते हैं कि उनके यौनपरक अंग संक्रमित हो गए हैं. लेकिन औरतों के संक्रमण के लक्षण दिखाई नहीं देते जबकि रोग लग चुका होता है.

एस टी डी से अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्य़ाएं हो सकती हैं. प्रत्येक एस टी डी से अलग प्रकार की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं होती हैं,  कुल मिलाकर उनसे ग्रीवा परक कैंसर और अन्य कैंसर हो सकते हैं जिगर के रोग, गर्भ सम्बन्धी समस्याएं या कष्ट हो सकते हैं. कुछ निम्न प्रकार के एस टी डी एच आई वी/एड्स की सम्भावनाओं को बढ़ा देते हैं.

एस टी डी के लक्षण 

(1) महिलाओं में योनि से स्राव और योनि के आसपास खुजली.

(2) मर्दों  मे लिंग से स्राव.

(3) रतिक्रिया  के समय अथवा मूत्र त्याग के समय पीड़ा.

(4)  पीड़ाविहीन लाल जख्म गुप्तांगो  के आसपास .

(5) मुलायम त्वचा के रंग वाले मस्से गुप्तांगो  के आसपास हो जाते हैं.

(6) गुदा परक मैथुन  वालों को गुदा के अन्दर और आसपास पीड़ा.

(7)  रात को पसीना और वजन का घटना,  समझ में नही आने वाली थकावट,
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