रति-कामराज = रतिक्रिया , रति-क्रीडा , मैथुन
भारतीय संस्कृति शिव-पार्वती के मिलन से स्थापित होती हैं, यही से आगे लक्ष्मी-नारायण, सरस्वती -ब्रह्मा से आगे नर-नारी की से पृथ्वी का विस्तार होना जाना जाता हैं, और नर नारी के मिलन में रति-कामराज के उत्पन्न होने से संतानोत्पत्ति का मार्ग प्रदर्शन शुरू होता हैं .
मैथुन = मानव जीवन की मुलभुत आवश्यकता हैं, मैथुन का मुख्य उद्देश्य संतान उत्पति हैं. पुनरुत्पति के लिये दो लिंगों के बीच मैथुन का विकास जीवधारियों पाया जाता हैं. इस लिए प्रेम जताना जो
एक मैथुन की पूर्व प्रक्रियाओं का प्रदर्शन पाया जाता हैं. समाज में प्रचलित काम या सम्भोग विरोधी मिथकों और
कपोल कल्पनाओं का खंडन करना व सम्भोग को सामान्य जन का विमर्श बनाना.
[ भारतीय समाज तथा आधुनिक अंग्रेजी समाज में विकृतियों से बचाव, भारतीय समाजवादी काम को ढकते.
और आधुनिक अंग्रेजी समाजवादी मैथुन प्रदर्शन में लगाव जिससे बीमारियों से बचाव ]
काम-सूत्र = भारतीय मैथुन की क्रियाओं के बारे में जातीय आधार पर रुचि या स्वीकृति,अरुचि या अस्वीकृति के भाव को जान सकते हैं. स्त्री और पुरुष के बहुत वर्ग भी है, जो कि स्त्री और पुरुष नैतिकता,सांस्कृतिक मान्यताओं के अलग-अलग क्षेत्र या प्रांतों और जातियों में भिन्न किस्म के रूप रहे हैं, संसार में स्त्री और पुरुष एक से नहीं थे बल्कि बहुरंगी हैं, संसार में अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग सम्भोग मान्यताएँ प्रचलन में हैं, काम-क्रिया के विभिन्न रूपों और इनके साथ जुड़े सम्बन्ध का व्यवस्थित वर्णन किया जा सकता हैं. किसी भी मैथुन और उसके साथ जुड़े सम्बन्ध पर काम-सूत्र का नैतिक रूप में मूल्य निर्णय नहीं किया जा सकता.
काम-सूत्र का दृष्टिकोण = स्त्री और पुरुष में शारीरिक समानता नही हैं बल्कि भेद है, स्त्री-पुरुष को काम-विज्ञान का अध्ययन होना चाहिए, जो इन दोनों की आनन्दानुभूति व क्रिया में भिन्नता में एकता को स्वीकार कराता है.
काम सूत्र की कलाँ = काम सूत्र का वात्स्यायन ने 64 कला का वर्णन किया हैं .
1. प्रजनन = मानव जीवन की मुलभुत प्रथम आवश्यकता के लिए काम कला का होना और ज्ञान पूर्ण होना आवश्यक होता है .जिसको मैथुनरत होकर ही प्राप्त किया जा सकता हैं .
मैथुन के प्रकार
1. योनी मैथुन = पुरुष के सहयोग से अपने वंश वृक्ष को बढ़ाने में सहायक .
2. हस्तमैथुन = स्त्री-पुरुष अपने हाथो से मैथुन करना .
3. गुदामेथुन = आधुनिक विकृतिक मानसिकता अपवाद पुराने समयनुसार भी विकृति रही जैसे हिंजड़ा से मैथुन पुरुष दुआर
4. मुख-मैथुन = स्त्री-पुरुष एक दुसरे से अपमे मुख से मैथुन करना [आधुनिक विकृत मानसिकता जो स्वतंत्रता कानून का दुपयोग से बढ़ावा ]
मैथुन का भोग-विलास
भोग-रोग एक सिक्के के दो पहलू है . ब्रह्मचर्य आरोग्य का मूल है...मैथुन के आठ प्रकार बताए हैं जिनसे बचना ही ब्रह्मचर्य है -
1. दृष्टिकोण मैथुन = पुरुष या स्त्रियों को कामुक भाव से देखना, विपरीत लिंगी को कामुक भावना से देखना
2. उन्हें स्पर्श करना = उसके रूप-गुणों का वर्णन करना,स्त्री- पुरुष सम्बन्धी चर्चा करना या गीत गाना
3. केलि मैथुन = दुसरे पक्ष को रिझाने के लिए शारीरिक मुद्रा से इशारे करना, जो मैथुन में सहायक होने से सविलास की क्रीड़ा करना माना जाता हैं .
4. स्त्री-पुरुष के गुणों की प्रशंसा करना.
5. गुप्तभाषण = एकांत में संताप करना, मैथुन सम्बन्धी गुप्त बाते करना अथवा पुरुष-स्त्री का छुपकर वार्तालाप करना , कीर्तन से इसमें छिपने मात्र का भेद हैं .
6. संकल्प मैथुन = कामुक कर्म का दृढ़ निश्चय करना, मैथुन करू ऐसी तरंग मन में उठाना .
7. अध्यवसाय = तुष्टिकरण की कामना से स्त्री के निकट जाना, मैथुन करने का उपाय करना , अपराध-मुक्त करना ,लोभ-प्रलोभ देकर, आगे-पीछे चक्कर कटकर या अन्य प्रकार का उद्योग करना .
8. क्रिया निवृत्ति अर्थात् वास्तविक रति क्रिया = जानबूझ कर लिंगेद्रिय से वीर्यपात-रजपात की क्रिया करना ,यह तो साक्षात् मैथुन करना ही हैं .इस प्रकार से आठ प्रकार से मैथुन करना ब्रुह्मचार्य का नाशक है , इस प्रकार की क्रिया से बचना ही सही ब्रुह्मचार्य हैं.
काम-सूत्र के आधुनिक रोग के कारणों और उसका निदान = ऐसे आचरणों से निर्लज्जता बढ़ जाती है, बोलनेवाले की जबान बिगड़ जाती है, मन पर बुरे संस्कार जम जाते है, इस काम से क्रोध बढ़ता है, जिससे लोग में परस्पर लड़ पढ़ते है, असभ्यता और पाशविकता भी बढती है .इस के बावजूद शारीरिक बीमारियाँ आकर घेरने लग गाती .
मैथुन से तृप्ति और अतृप्ति का परिणाम
तृप्ति शिथिलता सकारात्मक तृप्ति शीतलता नकारात्मक शीघ्रपतन को आत्म बल के कमजोर होने से
मनोगत भाव के भय के कारण शीघ्रपतन हो जाता हैं.
शीघ्रपतन = शीघ्र पतन नैदानिक चिकित्सा में रति क्रिया [ संभोग, समागम, अन्योन्य संसर्ग, मेल-जोल ] के मामले में यह शब्द वीर्य पात या वीर्य स्खलन के प्रयोग के लिए किया जाता हैं. पुरुष की इच्छा के विरुद्ध स्त्री सह वास करते समय उसका वीर्य अचानक स्खलित [ वीर्य पात ] हो जाते जिसको पुरुष चाह कर भी नही रोक [ स्तम्भ ] पाता. .स्त्री-पुरुष के समागम,की शुरुआत में ही वीर्य पात से स्त्री को संतुष्टि और तृप्तिदायक अवस्था की प्राप्त नही होती उस अवस्था को वीर्य स्खलित हो जाना या निकल जाना, इसे शीघ्र पतन होना कहते हैं. इस व्याधि का संबंध स्त्री से नहीं होता, पुरुष से ही होता है और यह व्याधि सिर्फ पुरुष को ही होता हैं .शीघ्र पतन की सबसे खराब स्थिति यह होती है कि सम्भोग क्रिया शुरू होते ही या होने से पहले ही वीर्य पात हो जाता है. काल से पहले वीर्य का स्खलित हो जाना शीघ्र पतन है. यह “अवधि ” कोई निश्चित समय नहीं है पर जब “शुरुआत ” के साथ ही “अंत” होने लगे या स्त्री-पुरुष अभी चरम पर न हो और स्खलन हो जाए तो यह शीघ्र पतन (Premature Ejaculation) है। ऐसे में संतुष्टि, ग्लानी, हीन-भावना, नकारात्मक विचारों का आना एवं अपने पत्नी के साथ संबंधों में तनाव आना वाजिब है. स्त्री-पुरुष दोनों की यह अवस्था ख़राब होती और इस वेदना को किसी को बताया नही जाता इस समय, रहा भी नही जाता और सहा भी नही जाता. सम्भोग की समयावधि कितनी होनी चाहिए यानी कितनी देर तक वीर्य पात नहीं होना चाहिए, इसका कोई निश्चित मापदंड नहीं है. यह प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक एवं शारीरिक स्थिति पर निर्भर होता है.सम्भोग के शुरू होने से 1 मिनट के भीतर ही अगर किसी पुरूष का वीर्य-स्खलन हो जाता है तो इसे शीघ्र-पतन ( premature ejaculation) कहा जायेगा. रति क्रिया कितनी देर तक होनी चाहिए यह बात हर व्यक्ति के शारीरिक व् मानसिक क्षमता पर निर्भर करती हैं .
कारण = भय , डर , चिंता ,छुप कर संभोग जैसे हस्त-मैथुन के साथ शारीरिक व् मानसिक परेशानियों का भी कारणों का पाया जाता हैं
चिकित्सा = इस समय आपसी बात-चित आप को स्थाईत्व दे सकता हैं.इस समय सहज रूप से पेश आये . एक बार मैथुन से जो उर्जा की खपत होती उस की भरपाई लगभग 500 किलो-कैलोरी दूध ,जूस या पोष्टिक आहार ज़रुर लें. सहवाग के समय लम्बे लम्बे सास ज़रुर ले जिस से आप को अतिरिक्त उर्जा मिलेगी .
भारतीय संस्कृति शिव-पार्वती के मिलन से स्थापित होती हैं, यही से आगे लक्ष्मी-नारायण, सरस्वती -ब्रह्मा से आगे नर-नारी की से पृथ्वी का विस्तार होना जाना जाता हैं, और नर नारी के मिलन में रति-कामराज के उत्पन्न होने से संतानोत्पत्ति का मार्ग प्रदर्शन शुरू होता हैं .
मैथुन = मानव जीवन की मुलभुत आवश्यकता हैं, मैथुन का मुख्य उद्देश्य संतान उत्पति हैं. पुनरुत्पति के लिये दो लिंगों के बीच मैथुन का विकास जीवधारियों पाया जाता हैं. इस लिए प्रेम जताना जो
एक मैथुन की पूर्व प्रक्रियाओं का प्रदर्शन पाया जाता हैं. समाज में प्रचलित काम या सम्भोग विरोधी मिथकों और
कपोल कल्पनाओं का खंडन करना व सम्भोग को सामान्य जन का विमर्श बनाना.
[ भारतीय समाज तथा आधुनिक अंग्रेजी समाज में विकृतियों से बचाव, भारतीय समाजवादी काम को ढकते.
और आधुनिक अंग्रेजी समाजवादी मैथुन प्रदर्शन में लगाव जिससे बीमारियों से बचाव ]
काम-सूत्र = भारतीय मैथुन की क्रियाओं के बारे में जातीय आधार पर रुचि या स्वीकृति,अरुचि या अस्वीकृति के भाव को जान सकते हैं. स्त्री और पुरुष के बहुत वर्ग भी है, जो कि स्त्री और पुरुष नैतिकता,सांस्कृतिक मान्यताओं के अलग-अलग क्षेत्र या प्रांतों और जातियों में भिन्न किस्म के रूप रहे हैं, संसार में स्त्री और पुरुष एक से नहीं थे बल्कि बहुरंगी हैं, संसार में अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग सम्भोग मान्यताएँ प्रचलन में हैं, काम-क्रिया के विभिन्न रूपों और इनके साथ जुड़े सम्बन्ध का व्यवस्थित वर्णन किया जा सकता हैं. किसी भी मैथुन और उसके साथ जुड़े सम्बन्ध पर काम-सूत्र का नैतिक रूप में मूल्य निर्णय नहीं किया जा सकता.
काम-सूत्र का दृष्टिकोण = स्त्री और पुरुष में शारीरिक समानता नही हैं बल्कि भेद है, स्त्री-पुरुष को काम-विज्ञान का अध्ययन होना चाहिए, जो इन दोनों की आनन्दानुभूति व क्रिया में भिन्नता में एकता को स्वीकार कराता है.
काम सूत्र की कलाँ = काम सूत्र का वात्स्यायन ने 64 कला का वर्णन किया हैं .
1. प्रजनन = मानव जीवन की मुलभुत प्रथम आवश्यकता के लिए काम कला का होना और ज्ञान पूर्ण होना आवश्यक होता है .जिसको मैथुनरत होकर ही प्राप्त किया जा सकता हैं .
मैथुन के प्रकार
1. योनी मैथुन = पुरुष के सहयोग से अपने वंश वृक्ष को बढ़ाने में सहायक .
2. हस्तमैथुन = स्त्री-पुरुष अपने हाथो से मैथुन करना .
3. गुदामेथुन = आधुनिक विकृतिक मानसिकता अपवाद पुराने समयनुसार भी विकृति रही जैसे हिंजड़ा से मैथुन पुरुष दुआर
4. मुख-मैथुन = स्त्री-पुरुष एक दुसरे से अपमे मुख से मैथुन करना [आधुनिक विकृत मानसिकता जो स्वतंत्रता कानून का दुपयोग से बढ़ावा ]
मैथुन का भोग-विलास
भोग-रोग एक सिक्के के दो पहलू है . ब्रह्मचर्य आरोग्य का मूल है...मैथुन के आठ प्रकार बताए हैं जिनसे बचना ही ब्रह्मचर्य है -
1. दृष्टिकोण मैथुन = पुरुष या स्त्रियों को कामुक भाव से देखना, विपरीत लिंगी को कामुक भावना से देखना
2. उन्हें स्पर्श करना = उसके रूप-गुणों का वर्णन करना,स्त्री- पुरुष सम्बन्धी चर्चा करना या गीत गाना
3. केलि मैथुन = दुसरे पक्ष को रिझाने के लिए शारीरिक मुद्रा से इशारे करना, जो मैथुन में सहायक होने से सविलास की क्रीड़ा करना माना जाता हैं .
4. स्त्री-पुरुष के गुणों की प्रशंसा करना.
5. गुप्तभाषण = एकांत में संताप करना, मैथुन सम्बन्धी गुप्त बाते करना अथवा पुरुष-स्त्री का छुपकर वार्तालाप करना , कीर्तन से इसमें छिपने मात्र का भेद हैं .
6. संकल्प मैथुन = कामुक कर्म का दृढ़ निश्चय करना, मैथुन करू ऐसी तरंग मन में उठाना .
7. अध्यवसाय = तुष्टिकरण की कामना से स्त्री के निकट जाना, मैथुन करने का उपाय करना , अपराध-मुक्त करना ,लोभ-प्रलोभ देकर, आगे-पीछे चक्कर कटकर या अन्य प्रकार का उद्योग करना .
8. क्रिया निवृत्ति अर्थात् वास्तविक रति क्रिया = जानबूझ कर लिंगेद्रिय से वीर्यपात-रजपात की क्रिया करना ,यह तो साक्षात् मैथुन करना ही हैं .इस प्रकार से आठ प्रकार से मैथुन करना ब्रुह्मचार्य का नाशक है , इस प्रकार की क्रिया से बचना ही सही ब्रुह्मचार्य हैं.
काम-सूत्र के आधुनिक रोग के कारणों और उसका निदान = ऐसे आचरणों से निर्लज्जता बढ़ जाती है, बोलनेवाले की जबान बिगड़ जाती है, मन पर बुरे संस्कार जम जाते है, इस काम से क्रोध बढ़ता है, जिससे लोग में परस्पर लड़ पढ़ते है, असभ्यता और पाशविकता भी बढती है .इस के बावजूद शारीरिक बीमारियाँ आकर घेरने लग गाती .
मैथुन से तृप्ति और अतृप्ति का परिणाम
तृप्ति शिथिलता सकारात्मक तृप्ति शीतलता नकारात्मक शीघ्रपतन को आत्म बल के कमजोर होने से
मनोगत भाव के भय के कारण शीघ्रपतन हो जाता हैं.
शीघ्रपतन = शीघ्र पतन नैदानिक चिकित्सा में रति क्रिया [ संभोग, समागम, अन्योन्य संसर्ग, मेल-जोल ] के मामले में यह शब्द वीर्य पात या वीर्य स्खलन के प्रयोग के लिए किया जाता हैं. पुरुष की इच्छा के विरुद्ध स्त्री सह वास करते समय उसका वीर्य अचानक स्खलित [ वीर्य पात ] हो जाते जिसको पुरुष चाह कर भी नही रोक [ स्तम्भ ] पाता. .स्त्री-पुरुष के समागम,की शुरुआत में ही वीर्य पात से स्त्री को संतुष्टि और तृप्तिदायक अवस्था की प्राप्त नही होती उस अवस्था को वीर्य स्खलित हो जाना या निकल जाना, इसे शीघ्र पतन होना कहते हैं. इस व्याधि का संबंध स्त्री से नहीं होता, पुरुष से ही होता है और यह व्याधि सिर्फ पुरुष को ही होता हैं .शीघ्र पतन की सबसे खराब स्थिति यह होती है कि सम्भोग क्रिया शुरू होते ही या होने से पहले ही वीर्य पात हो जाता है. काल से पहले वीर्य का स्खलित हो जाना शीघ्र पतन है. यह “अवधि ” कोई निश्चित समय नहीं है पर जब “शुरुआत ” के साथ ही “अंत” होने लगे या स्त्री-पुरुष अभी चरम पर न हो और स्खलन हो जाए तो यह शीघ्र पतन (Premature Ejaculation) है। ऐसे में संतुष्टि, ग्लानी, हीन-भावना, नकारात्मक विचारों का आना एवं अपने पत्नी के साथ संबंधों में तनाव आना वाजिब है. स्त्री-पुरुष दोनों की यह अवस्था ख़राब होती और इस वेदना को किसी को बताया नही जाता इस समय, रहा भी नही जाता और सहा भी नही जाता. सम्भोग की समयावधि कितनी होनी चाहिए यानी कितनी देर तक वीर्य पात नहीं होना चाहिए, इसका कोई निश्चित मापदंड नहीं है. यह प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक एवं शारीरिक स्थिति पर निर्भर होता है.सम्भोग के शुरू होने से 1 मिनट के भीतर ही अगर किसी पुरूष का वीर्य-स्खलन हो जाता है तो इसे शीघ्र-पतन ( premature ejaculation) कहा जायेगा. रति क्रिया कितनी देर तक होनी चाहिए यह बात हर व्यक्ति के शारीरिक व् मानसिक क्षमता पर निर्भर करती हैं .
कारण = भय , डर , चिंता ,छुप कर संभोग जैसे हस्त-मैथुन के साथ शारीरिक व् मानसिक परेशानियों का भी कारणों का पाया जाता हैं
चिकित्सा = इस समय आपसी बात-चित आप को स्थाईत्व दे सकता हैं.इस समय सहज रूप से पेश आये . एक बार मैथुन से जो उर्जा की खपत होती उस की भरपाई लगभग 500 किलो-कैलोरी दूध ,जूस या पोष्टिक आहार ज़रुर लें. सहवाग के समय लम्बे लम्बे सास ज़रुर ले जिस से आप को अतिरिक्त उर्जा मिलेगी .
श्री मान जी नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंमेरी समस्या ये है की मे जब मैथुन करता हूँ तो मेरी स्त्री के योनी में पानी ज्यादा आने से उस का आनन्द नही आता कृपया इलाज बताये, मेरी उम्र 26 और मेरे पत्नी की उम्र 24 हैं,
ये अपना शुल्क लेकर इलाज करतें आप शुल्क देदो इलाज आप को सही मिल जायेगा .
हटाएंमेरा अपनी पत्नी के साथ सहवास करते समय वीर्य स्खलन नहीं होता है, जिससे मेरी पत्नी को पीड़ा होती है, कृपया उचित सुझाव दे।
जवाब देंहटाएंसशुल्क सेवा, शुल्क दे सेवा लाभ ले .
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