माता की अवस्था = माता की अवस्था को तिन आयाम के प्रकारों का संजीवन देना पड़ता है ,१. माता को अपनी सन्तान को जन्म के पूर्व अपने पेट में पालना पड़ता जिसका आहर सम्बन्ध बहुत गहरा निभाना पड़ता .क्योकि माता के गर्भ में पलते बच्चे को भी अच्छा आहार मिलना आवश्यक होता है .ताकि ओजस्वी बल बुद्धि और ज्ञानवान सन्तान पैदा हो का ध्यान रक्खना पड़ता है, २. बच्चा पैदा होने के बाद आहार विहार के पालन पोषण का निरंतर ध्यान रखना पड़ता है .माता जानती की कौन सा आहर अपनी परम्परा को जीवित रखकर देना जरूरी है और किस मौसम में कौन सा आहर के साथ पहनावा जरूरी है और, ३.शिक्षा का प्रवेश तीसरी अवस्था में बच्चे के वृदि विकाश का समय होता है ,अब साथ ही साथ आघुनिक जीवन शैली की पालना का लाभ कम और नुकसान ज्यादा स्वास्थ के मामले में बढ़ता नजर आ रहा है कारण की बढती उत्पकता के प्रसारण के माध्यमो से प्रभावित जंक आहारो की मांग बढ़ जाती है जिस से आज बच्चो को भी आज वो रोग जो जीवन शैली के कारण लग रहे जिसका पूर्व बीते वर्षो में नही होते थे .अब माता के ज्ञान में विज्ञानं की आवश्यकता का होना जरूरी हो गया की अपना पुत्र बीमार खाने पिने तथा उठने बैठने के कारण जो आज के पर्यावरण के आधुनिक जीवन शैली के नाम से बिमारिया बढ़ रही है . उन से कैसे बचा जा सकता है .
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