वृष्टि ,बरसना ,बरसात = वृष्टि ,बरसना ,बरसात जिस से अन्न का उत्पन्न होता है .और अन्न से मानव जीवन का जीना संचालन होता है और परिवार की वृदि विकास की यात्रा निरंतर चलती रहती है .वृष्टि या बरसात के कारण ही इस सृष्टि पर अन्न का उत्पादन होता है .और अन्न से ही मानव वृष्टि, मानव सृष्टि और मानव दृष्टी का निर्माण होता है .यहा तक तो धरती के समान इस शरीर का निर्माण होता है यह नियम लागु होता ठीक वैसे ही इस देह में इस शरीर में भी चित ,मन और ज्ञान के धारणा का उपज ज्ञान होता है . भारतीय जीवन तिन आयामों का समर्थन करता,वृष्टि ,सृष्टि और दृष्टी .आपकी इस देह रूपी सृष्टि को जिस किसी ज्ञानी के पास उस ज्ञानी की दृष्टी में उस ज्ञानी के ज्ञान रूपी वृष्टि से अपने चित या मन से सकारात्मक या नकारात्मक जो शिक्षा को ग्रहण करते उस शिक्षा से आप का दृष्टी कोण बनेगा और उस दृष्टी कोण से ही आप की सृष्टि बनेगी यानि की आप का शरीर बनेगा .लिखने का मतलब की मन की भाषा से देह की भाषा को दिशा दी जाती है .अध्यापक का ज्ञान सकारात्मक होता है परन्तु अध्यापक के नकारात्मक या सकारात्मक ज्ञान की बरसात का फल आप ग्रहण करते है .अध्यापक ने आप ज्ञान दिया की सोना धातु पिली होती है .और ज्ञान पूरा है तो ठीक नही तो मनोजन्य बीमारी को आप उत्पन्न करके पीतल को ही पिली धातु के रूप में मानने का स्वरूप देंगे .
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