शनिवार, 26 मई 2012

काम = काम से कामनाएं ,इच्छा ,विचार ,कल्पनाए ,उपकल्पना की गति और मती का मिलन का मेला कही भ्रम ,कही सत्य ,कही राग या वैराग ,कही बल ,कही निर्बल ,कही खोने ,क

काम = काम से  कामनाएं ,इच्छा ,विचार ,कल्पनाए ,उपकल्पना की गति और मती का मिलन का मेला कही भ्रम ,कही सत्य ,कही राग या वैराग ,कही बल ,कही निर्बल ,कही खोने ,कही पाने भिन्न भिन्न प्रकार के विचार ही तो काम है .युवक को युवती की चाह की राह का एक विचार ,एक मिलन ,एक स्पर्श सुख की चाह ,पुत्र पाने की कल्पना ,एक वीर्य की शुक्ष्म बूंद से मानव का निर्माण ,मानव की विकास यात्रा भी तो एक काम की बिंदु से रेखा ,चिंगारी से आग की कामना और इन कामनाओ में गगन में तारो की भाती विचरण और इन का संकरा इक दिमागी रास्ता  जिस प्रकार मकान पर चढने की सीढ़ियों का विचार की मकान पर चढा जाये का मात्र विचार बार बार आये और किसी से नही चढा जाये तो नकारात्मक प्रभाव ही तो काम का सकारात्मक स्वरूप होता है ,और किसी से चढा जाये तो सकारात्मक परन्तु वो जो चढा जाये उस को काम नही कहा जाता ,काम तो मात्र कल्पनाओ को कल्पनाओ के प्रतिबिंम्ब के प्रतिबिंम्ब में मात्र दर्शन है .और इन विचारों की श्रंखलाओ के टूटने पर गुस्सा,क्रोध का उत्पन्न होना ...  

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