मानव आहार = मानव आहार भारतीय संस्कृति में कहा जाता की जैसा खाओगे अन्न [ अनाज ,खुराक ,खाना ] वैसा होगा मन्न [ मन ] और इस देव संस्कृति में आहार को तिन प्रकार से क्रम या विभाग में बताया गया . सतो गुनी आहार ,रजो गुणी [ राजसिक ] आहार और तामसी आहार. इस आहार को चार प्रकार से पाच [ ५ ] कारणों दुआरा खाया जाता है . [ १ ] मानव को सांसारिक जीवन जीने के लिए खाना . [ २ ] बीमारी को मिटाने के लिए खाना खाना .[ ३ ] जिज्ञासु के रूप में की भोजन के परिणामों के यथार्थ रूप को जानने की इच्छा से खाने वाला और चोथा [ ४ ] ज्ञान से की इस से लाभ -हानि क्या है जैसे अमृत व् जहर भोजन पाने के कारण शब्द ,स्पर्श ,रूप ,रस, गंध के प्रसंग में इनके कारण रूप से भोजन का अंश ग्रहण करना होता है . शब्द - कान से सुनने पर ,जैसे यह आम मीठा है .चाकलेट मीठी है ,इस प्रकार के शब्दों का आकर्षण से खाना स्पर्श - शरीर के हाथ या त्वसा से स्पर्श सुख से भोजन करने की इच्छा ताजा रोटी और बासी रोटी का हाथ से ज्ञात करना रूप -आँखों को रूप रंग-बिरंगा [ इन्द्रधनुषी ] अच्छा लगने [ दिखने ] से भोजन खाना. रस - जीभ से रस का स्वाद अच्छा लगने के कारण खाना खाना . गंध - नाक से सुगंध से प्रभावित होकर खाना खाना . इस प्रकार मन ,बुद्धि , और अहंकार के कारण पंच तत्वों को इंसान भोगता है .जिससे मानव की आठ प्रकृति बनती है.जो आठ प्रकार की जड-चेतन प्रकृति जानी जाती है ...
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