स्वाथ्यप्रद कर्म योग = कर्म योग का आरम्भ यानि बीज का समाप्त होना नही होता है और भी इस के विपरीत फलस्वरूप दोष भी नही होता यानि की इस कर्म योगरूप से अपने धर्म का विकाश ही होता है .सकारात्मक कर्म और नकारात्मक कर्म का फल स्वय को ही भोगना पड़ता .जैसे आम खाने की इच्छाशक्ति पर आम की गुठली [ आम क बीज ] बोने पर बीज का समाप्त होना ही है .परन्तु उस से आम का पेड़ प्राप्त होना दोष भी नही है .बल्कि अपने धर्म का विकाश ही है .नकारात्मक कर्म में इच्छा तो आम के बीज की परन्तु कर्म मात्र कामनाओ के बबूल का बीज को बोया जाय, तो कर्म फल का योग फल सकारात्मक कर्म के विरुद्ध ही प्राप्त होगा जो दोषपूर्ण नही होकर दोष रहित ही है .मान लो की आप को वजन घटना है,या यौवन शक्ति बढ़ानी या बीमारी को मिटानी है . और आप सकारात्मक आहार उपचार ले रहे या नकारात्मक आहार उपचार उस कर्म का लक्ष्य बीज का समाप्त होना नही होकर अपने धर्म का [ स्वास्थ्य का ] विकाश ही है . जिस को आधुनिक भाषा में कहा जाता है प्रोटीन को खाना है शरीर निर्माण के लिए और गुर्दों का रोगी खाये तो शरीर का निर्माण नही होकर और गुर्दों को खराब कर सकता है .जहा सकारात्मक प्रयास का नकारात्मक फल मिला नही यहां ज्ञान का अवरोधन ,ज्ञान का भटकाव के कारण ही फल की प्राप्ति हुई वो सकारात्मक है .
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