बुधवार, 27 मार्च 2013

कर्मो की नो प्रकार की गतिविधियों का वर्णनात्मक स्वरूप

मानव जीवन में कर्म को नो प्रकार से करने पर  सफलता अवश्य मिलती है . जिसका वर्णन भक्ति मार्ग में नवदा भक्ति [ नो प्रकार के कर्म ] करने से इस सांसारिक गतिविधियों में इस शरीर और आत्मा का होना सफलतापूर्वक जीवनशैली को चलाया जा सकता है .इन्सान के चेतन अवस्था के नो स्वरूपों से जीवन यापन किया जाता है ,जीवन यापन भी एक भक्ति है ,और इस सांसारिक जीवन जीने की कला को हंस और इस पिंड से आत्मा का ज्ञान परमहंस कहलाता है . जो नो रास्तों से [ माध्यम ] से सफल बनाया जा सकता है . [ 1 ] श्रवण कर्म - किसी भी ज्ञान को चेतन अवस्था से कानों से श्रवण करना चाहिए .जो आप कोई बात अच्छी तरह सुन लेंगे तो उस बात को समझ भी सकते है , जो आप एक पूरा श्रवण ज्ञान हुआ .[ 2 ] कीर्तन कर्म - जब आप किसी बात को सुन लिया है तो अब आप उस बात को अपने मुँह से बखान ,गुणगान यश को बता सकते है . [ 3 ] स्मरण कर्म - जब आप किसी बात को बखान अपनी बुद्धि से स्मरण या याद कर सकेंगे .[ 4 ] पाद - सेवन कर्म - छोटे से छोटे रूप व असुंदर तो उपयोग ले सकेंगे  [ जैसे भगवान का चेहरा की बजाय उन के पावो पर ही नजर , तर्क वितर्क से बचना ]. [ 5 ] अर्चन कर्म - सत्कार से उस कर्म की रुचि पूर्वक करना ही अर्चन है .[ ६  ] वंदन कर्म - किसी भी कर्म की प्रमाण स्तुति करना ही वंदन कहलाता है . [ 7 ] दास्य कर्म - किसी भी कर्म का निम्न बनकर  सेवक यानि जैसे उस का दास हो .[ ८ ] सख्य कर्म -  किसी भी कर्म को सखापन , मित्रता पूर्वक करना . [ ९ ] आत्म-समर्पण कर्म - किसी भी कर्म को आत्मा से लींन  होकर ,समर्पित होकर करना  . इस प्रकार जो भी कर्म मनुष्य करता है तो धरती पर कोई कर्म ऐसा नही जिस सफलता का संदेह हो ..ज़रूर ज़रुर सकारात्मक सफलता अवश्य मिलती है .

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