गुरुवार, 9 अक्तूबर 2014

हर कोई वैद्य

बड़ा अफ़सोसजनक बात हैं की आयुर्वेद चिकित्सा के नाम से यहा भारत में हर कोई चिकित्सक बना हुआ, इधर सुनी उधर सुनाई और हो गया इलाज, जिससे भ्रामक आयुर्वेद चिकित्सा के रूप में विकृति पैदा कर दी, शरीर के मानसिक और शारीरिक अध्ययन किये बिना ही अथवा बिना अनुसंधान के ही बातों का तिल का ताड़ बना दिया जाता हैं, जिससे भारतीय वैदिक चिकित्सा को जो स्थान आज मिलना चाहिए था उस स्थान को बाजार की आधुनिक दवा कंपनियों ने इलाज के नाम पर पाकेटमार बनी हुई हैं, दवा कंपनियों के निर्देशन में आज के आधुनिक डाक्टर अपनी चिकित्सा लय में हमेशा के रोगी को बाँध के रखते की ये दवाई जीवन भर खानी पड़ेगी, जब घाव ठीक हो जाता तो दवाई नहीं खाते परन्तु रक्तचाप की बीमारी बता कर हमेशा के लिए अपना ग्राहक बना देते हैं, जब की जीवन शैली की बीमारी होती, इस प्रकार की बीमारियों में दवा खाने की आवश्यकता ही नहीं होती, ये खान पान आदतों की बीमारी होती. स्वयं सेवन किये बिना ही जैसे तुलसी पत्र को सभी लोग प्रायोजित कर देते की पाच से पचास पत्ते रोज खाओ जो चिकित्सक कि नजर से गलत हो सकता हैं. क्योंकि पित्त प्रकोप में वर्जित होता हैं तुलसी पत्र, नारी के गुप्तांगो में अगर गर्मी है तो वो गर्मी को और अधिक बढ़ाए गी और नारी का जीवन और दुःख दाई हो जायेगा, और तुलसी पत्र के प्रति नफरत और भारतीय चिकित्सा से भरोसा उठ जाता हैं. चिकित्सा को अनुभवी चिकित्सक के दिशा निर्देश से ही प्रयोग करना चाहिएं. जिससे आप का रोग नष्ट हो कर एक अच्छा स्वास्थ्य मिल सके.        

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