मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं.
मनुष्य के चित से विचार की उत्पति शब्दों से होती हैं. शब्दों को फलित होने या नहीं होने में स्थिति असंतुलित होती हैं. इस असंतुलन में तीन प्रकार के संतुलन पाए जाते हैं.
पहला प्रकार का मनुष्य गुलाब के फुल की भाती होता है.वो हमेशा ताज़ा खिला होता हैं, अपनी खुशबू से सभी का मन मोह लेता हैं अर्थात मात्र फूलता ही फलता नहीं जैसे सिर्फ बोलता हैं, कथनी ही करता हैं. कर कुछ भी नहीं सकता.
दूसरा प्रकार का मनुष्य आम के वृक्ष के समान होता हैं. जो हमेशा फूलता हैं मद मस्त खुशबूदार मौसम पैदा करता हैं.और फलता भी हैं. मीठे रसीले आम भी देता हैं.अर्थात फूलता भी हैं और फलता भी हैं. यानि इस प्रकार के मनुष्य जो कहता भी उसको कर के भी दिखाता हैं.
तीसरा प्रकार का मनुष्य गुल्लर के समान होता हैं. जिस पर फल आता जिसको काष्ट फल भी कहते हैं. ये फूलता नहीं, सिर्फ फलता हैं. इस प्रकार का मनुष्य अपने कर्म को वाचाल नहीं करता बल्कि उस के कर्म को करके ही दिखाता हैं.
मनुष्य के चित से विचार की उत्पति शब्दों से होती हैं. शब्दों को फलित होने या नहीं होने में स्थिति असंतुलित होती हैं. इस असंतुलन में तीन प्रकार के संतुलन पाए जाते हैं.
पहला प्रकार का मनुष्य गुलाब के फुल की भाती होता है.वो हमेशा ताज़ा खिला होता हैं, अपनी खुशबू से सभी का मन मोह लेता हैं अर्थात मात्र फूलता ही फलता नहीं जैसे सिर्फ बोलता हैं, कथनी ही करता हैं. कर कुछ भी नहीं सकता.
दूसरा प्रकार का मनुष्य आम के वृक्ष के समान होता हैं. जो हमेशा फूलता हैं मद मस्त खुशबूदार मौसम पैदा करता हैं.और फलता भी हैं. मीठे रसीले आम भी देता हैं.अर्थात फूलता भी हैं और फलता भी हैं. यानि इस प्रकार के मनुष्य जो कहता भी उसको कर के भी दिखाता हैं.
तीसरा प्रकार का मनुष्य गुल्लर के समान होता हैं. जिस पर फल आता जिसको काष्ट फल भी कहते हैं. ये फूलता नहीं, सिर्फ फलता हैं. इस प्रकार का मनुष्य अपने कर्म को वाचाल नहीं करता बल्कि उस के कर्म को करके ही दिखाता हैं.
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