गुरुवार, 19 जुलाई 2012

हमारा शारीर निर्माण = मानसिक विकास तथा शारीरिक विकास के साथ शरीर पुष्ट व् गठीला दिखेगा ,स्वभाव से क्रियाशील ,आक्रमक ,विवेकवान ,कम धार्मिक ,स्फूर्तिवान,शक्तिशाली ,और खेद-विषाद नही पाया जाता है एवं वे बालक किसी भी खतरे की स्थिति का आसानी से निपट सकते है ,ये रजोगुणी कायप्रधान के प्रभाव के बनते है .

हमारा शारीर निर्माण  = भारत में घर घर में यह कहावत खी जाती है ,जैसा खाओंगे अन्न वैसा होगा तन और मन्न. शिशु का माता के गर्भ में अपनी माता से और शिशु के शैशवावस्था में जो आहार मिलता है उससे ही बालक का निम्न प्रकार से शरीर निर्माण होता है .                                                                                                    प्रमस्तिष्कीय प्रधान  शरीर निर्माण  = शिशु का जीवन माता के गर्भावस्था में और उसके बाद शैशवावस्था में दोषपूर्ण अल्पपोषण आहार से बालक को मानसिक विकास तथा शारीरिक विकास को अवरुद्ध ही नही करता बल्कि बीमार होने की सम्भावनाए भी बढा देता है .इन दोनों ही अवस्थाओ में अगर बालक को पोष्टिक आहर से वंचित रखा जाता है तो शारीरिक विकास के साथ मानसिक विकास की वृदि रुक जाती है या कमजोर हो जाती है .जिससे बालक का भविष्य नाजुक संवेदनशील ,चिडचिडापन ,दुबले-पतले ,अधिक धार्मिक ,चिंता अधिक ,मनस्ताप ,मनोविदिलता और पलायनवादी हो जाते है जिसको प्रमस्तिष्कीय प्रधान तमोगुणी में कभी कभी भावात्मक रजोगुणी का प्रभाव भी देखने को मिलता है जिसके कारण मन की अस्थिरता होती है .                   आतराग प्रधान शरीर निर्माण  = शिशु का जीवन माता के गर्भावस्था में और उसके बाद शैशवावस्था में दोषपूर्ण अतिपोषण आहार से बालक को मानसिक विकास और शारीरिक विकास को अवरुद्ध ही नही करता बल्कि बीमार होने की सम्भावनाए भी बढ़ा देता है .इन दोनों ही अवस्थाओ में में अगर बालक को पोष्टिक आहार से वंचित रखा जाता है तो शारीरिक विकास के साथ मानसिक विकास की वृद्धि रुक जाती है या कमजोर हो जाती है .जिस से बालक का भविष्य पर प्रभाव निम्न प्रकार से पडेगा ,मानसिक परिवर्तन में उत्साह अधिक होगा स्वभाव से सुख ,भावुक कम ,उत्साह और अवसाद अधिक होगा ,आराम की रूचि शरीर से गोल-मटोल ,नरम स्वभाव. आतराग प्रधान सतोगुणी का प्रभाव दिखेगा .                                                       कायप्रधान शरीर निर्माण  = शिशु का जीवन माता के गर्भ में और उसके बाद शैशवावस्था में संतुलित पोषक आहार खिलाने से उस बालक का मानसिक विकास और शारीरिक विकास में वृद्धिशील तो होगी ही साथ ही साथ बीमार होने की संभावनाए कम पड़ जायेगी या मिट जायेगी और कोई भी खतरा नही रहेगा और इन दोनों ही अवस्था में मानसिक विकास तथा शारीरिक विकास के साथ शरीर पुष्ट व् गठीला दिखेगा ,स्वभाव से क्रियाशील ,आक्रमक ,विवेकवान ,कम धार्मिक ,स्फूर्तिवान,शक्तिशाली ,और खेद-विषाद  नही पाया जाता है एवं वे बालक किसी भी खतरे की स्थिति का आसानी से निपट सकते है ,ये रजोगुणी कायप्रधान के प्रभाव के बनते है . 

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