मैं नकरात्मक या सकारात्मक हूँ वो मेरी प्रेरणा का कारण है = यहाँ पर पतंजली द्वारा योग सूत्रबध्द का निर्देश है! पतंजलि कृत योगसूत्र में आत्मा को
प्रत्यगात्मा तथा परागात्मा कहा गया है! जब तक जीवात्मा इन्द्रियभोग में आसक्त रहता
है तब तक वह परागात्मा कहलाता है और ज्योही वह इन्द्रियभोग से विरत हो जाता है तो
प्रत्यगात्मा कह लाने लगता है! जीवात्मा के शरीर में दस प्रकार के वायु कार्यशील
रहते है और इसे श्वास प्रक्रिया [ प्राणायाम ] द्वारा जाना जाता है! पतंजली की योगपदत्ती
बताती है की किस तरह शरीर के वायु के कार्यो को तकनीकी उपाय से नियंत्रित किया जाए
जिससे अन्ततःवायु के सभी आंतरिक कार्य आत्मा को भौतिक आसक्ति से शुद्ध करने में
सहायक बन जाएँ! इस योगपद्त्ति के अनुसार प्रत्यगात्मा ही चरम उद्देश्य है! यह
प्रत्यगात्मा पदार्थ की क्रियाओं से प्राप्त की जाती है! इन्द्रियाँ इन्द्रियविषयो
से प्रतिक्रिया करती है,यथा कान सुनने के लिए,आँख देखने के लिए,नाक सूंघने के
लिए,जीभ स्वाद के लिए,तथा हाथ स्पर्श के लिए होता है,और ये सब इन्द्रिया मिलकर
आत्मा से बहार कार्यो में लगी रहती है!ये ही कार्य प्राणवायु के व्यापार [ क्रिया ] है! अपान वायु नीचे की और जाती है, व्यान
वायु से संकोच तथा प्रसार होता है, समान वायु से संतुलन बना रहता है और उदान वायु
ऊपर की और जाती है और जब मनुष्य प्रबुद्ध हो जाता है तो वह इन सभी वायु को आत्मा-साक्षात्कार
की खोज में लगाता है!
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