मानव जीवन में सिखा आचरण भिन्न भिन्न हो सकता है = परन्तु कौन कितना तार्किक है और कौन कितना दार्शनिक , जब इस प्रकार के दो आत्मा का मिलन होता है, तो दो के दिमागी क्षमताओं का प्रदर्शन होता है. ,देखिये आज का मनोवैज्ञानिक ही पुराने दर्शन शास्त्र को मान्यता देता है .तार्किक बहस को महत्व देता है की ऐसा होता है, या होता ही नही .जैसे आत्मा को देखा नही जा सकता ,विचारों को देखा नही जा सकता .की जब तक कोई अपनी बात नही बताता तो मन की कैसे जाने ,थी उस प्रकार से जैसे दूध में घी होता है ,गन्ने में रस होता, चंदन में खुसबू होती है या मेंहदी में रंग होता है जो नंगी आँखो से नही देखा जा सकता है परन्तु जिसने मंथन प्रक्रिया देखी हो तो वह बता सकता है की इस दूध से घी कैसे निकला जा सकता है .और गन्ने से रस कैसे निकला जा सकता है ,इस की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है .जैसे दूध को जमाना पड़ता है ,उस के बाद दही बनने की प्रक्रिया होती है ,फिर दही को बिलोना [ मथना ] फिर मक्खन आता है, और उस के बाद उस मक्खन को उबालना पड़ता है ,इतनी सावधानीपूर्वक के बाद उस दूध से घी मिलता है .जो कच्चे दूध में सभी को वो घी दिखाई नही देता .ठीक उस प्रकार से मनोवृति की अभिवृति सभी नही जान सकते है की किस नर-नारी ने किस कारण से अपनी क्षमताओं को बढ़ावा दिया है ,जो बोया एक छोटे बीज का बना व्रक्ष आज उस को पालना या काटने पसंद नही करता और उस का दोष दूसरे पर मढना चाहता है ... अपने मन से बसा मज़ाक कभी कभी हमारे लिए घातक बन सकता है
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