रविवार, 10 फ़रवरी 2013

अपनी नकारात्मक चिंता को सकारात्मक एवं सफल बना ये .

चिंता चिंता चिंता = किसी किसी ही नही सभी को होती हैं चिंता ,परन्तु कारण सभी के अलग -अलग होते है ,  एक उत्सुक आदमी अपने खतरे को अनुचित तरीके से नकारात्मक सोच ,भय को दौरा रहता है जिसको लड़ने की बजाय उस बीमारी को विचारों की तेजी उड़ान से साथ मजबूत पहचान से प्रति क्रिया को प्रकट करता है .                                                                                                                                                                                चिंताओं  से आदमी शारीरिक उत्तेजना पूर्ण उत्सुकता केन्द्रित वापस होने की बजाय अहसास और स्वीकार करने से चिंता से दिल की धड़कन तेजी होने से पाचन तंत्र के साथ उच्च रक्तचाप बढ़ जाता है .एवं सामाजिक चिंता की वृद्धि होती है जो व्यर्थ होती है .चिंता से दिल तेज  धडकता विचारोत्तेजक भावना पैदा हो जाती है जो जिस के कारण सामान्य दैनिक कार्य होने मे कठिनाइयों भरे नजर आते है जो असंभव नजर आते है .जिसका उपचार संज्ञानात्मक व्यवहार यही होता की उस बीमार को उसी संज्ञात्मक नये अनुभवों से विचारों के बीच सम्बन्ध को बदलने वाला उपाय विचार होना चाहिए जिस बात या संज्ञा की चिंता उसी नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों में बदला जाना जरूरी होता है                                                                                         मन परिपूर्णता को सुधरने से मालूम होता की चिंता तो अपनी वो पहचान है जो कथित ख़तरों के लिए एक प्रक्रिया हैं .और जो आदमी अपनी पूरी चिंता के लिए सार्थक प्रयास करता तो उन नकारात्मक विचारों से तो अपनी पहचान बनाने में समर्थ होता हैं .                                                                                                              अपनी चिंता को साकार करने के लिए उन विघटनकारी ख़तरों को जवाबदेही से मुकाबला करना ही सकारात्मक प्रतिक्रियाशील चिंता मुक्त हो सकते हैं .                                                                                              
अपनी नकारात्मक चिंता को सकारात्मक एवं सफल बना ये .




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