गुरुवार, 28 मार्च 2013

संज्ञा का गुणगान कीर्तन कर्म से बढ़ता हैं .

नौ कर्मो में कीर्तन कर्म का महत्व = हम किसी संज्ञा का [ विषय का ] बखान या गुणगान कब करते की जब तक उस के बारे में हमने सही ढंग सुना हो तब .अगर आप नें आम को देख तो लिया है परन्तु उस के गुणगान सुनें ही नही तो आप दुसरो को कैसे बताएगें की मीठा होता या कडवा, और जब किसी विशेषज्ञ से उस के बारे में सुनेंगे तो आप उस आम के बारे में  बता पाएंगे की ये मीठा आम, रसीला आम हैं. किसी भी कर्म का आप कीर्तन कर्म तब ही कर  पायेगें  जब आप उस के बारे में अच्छी श्रवण क्षमता बनायेगें. अपनी अच्छी श्रवण क्षमता बना ये और कीर्तन कर्म की शोभा बढ़ाएं. चाहे आप व्यापार करो, चाहे परिवार चलाए या कोई प्रस्तुति करण हो उस को गुणगान के महत्वपूर्ण भूमिका रहती हैं .  

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