शुक्रवार, 29 मार्च 2013

इस मनुष्य जीवन में सुगमता पूर्वक जीने की कला नौ कर्मो से सफल बनाया जा सकता है .

नौ कर्म में अर्चन कर्म का होना = अर्चन कर्म किसी संज्ञा के सत्कार को जानना और उसका पालन करना जैसे किसी मित्र, ग्राहक के आगमन या वस्तु विषय में उसका सत्कार करने से यानी सत्य आकर देना . जैसे फल विक्रेता अपने फल को साफ , सुव्यवस्थित परिभाषित रखना या बताना .संज्ञा की कीमत को जानना .
वंदन कर्म का जीवन में लागू करना = वंदन का मतलब होता है प्रमाण स्तुति करना जैसे किसी फुल के बारे में बताना की कोन सी किस्म का है, सुगंध कैसी , कीमत कैसी है, उत्पाद कहा होता है .सारे प्रतीक्षिकरण को लागू करना .
दास्य कर्म का जीवन में लागू करना = अपने आप को लघु - छोटा बनकर सेवा भाव यानि सेवक बन कर जिस प्रकार माता बच्चे के साथ बच्चा बन कर उस की मांग पूर्ति बिना मांग करती जाए , किसी बीमार को देखने के लिए समय पर नर्स बिना माँगे रोगी को दवाई खाना पीना , मलमूत्र का निष्कासन पर ध्यान देना . ये दास्य कर्म जीवन में लागू होता है .
सख्य कर्म का जीवन में लागू करना = सखापन या मित्रता पूर्वक संज्ञा के साथ व्यवहार करना विशेष करके मित्र दुःख के दिनों में मददगार होता है अपनी कमाई को संकट में पड़े दोस्त को आधी दे देता कोई  बिना शर्त के .शिक्षा, व्यापार, रिश्ता, संकट का समय .उस समय मित्र भाव होना जरूरी है .
आत्म समर्पण कर्म जीवन में लागू करना = किसी भी संज्ञा कर्म को करते समय आत्म समर्पण यानि पूरा मन लगाकर करना जैसे अर्जुन को तीर चलते समय निशाने के अलावा कुछ भी नही दिखता ,साँस ,दिमाग और आत्मा के समर्पण आदेश मे ही हो .       

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