मंगलवार, 20 अगस्त 2013

मनोगत भाव

     मनोगत भाव =   मनोगत समस्त भाव कहने में नही आते । कुछ तो कहने में आ पाते है, कुछ भाव:भंगिमा से व्यक्त होते हैं और शेष पर्याप्त क्रियात्मक हैं।  वस्तुत:वक्ता एक ही प्रकार की बात कहता, किन्तु श्रोता यदि बैठे दस हो तो, दस प्रकार के आधार [ तात्पर्य ,आशय ] ग्रहण करते है। व्यक्ति की बुद्धि पर राजसी गुण रजोगुण, तामसी गुण के गुणों का प्रभाव होने से उसी स्तर की वार्ता पकड़ पाता है। इसलिए एक वैचारिक बंधन आ जाता हैं। इसलिए मतभेद स्वभाविक होता हैं , काल और भाषा का भी भेद सत्य धारा में बाधा आना कोई खेद का विषय नही।   

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