मनोगत भाव = मनोगत समस्त भाव कहने में नही आते । कुछ तो कहने में आ पाते है, कुछ भाव:भंगिमा से व्यक्त होते हैं और शेष पर्याप्त क्रियात्मक हैं। वस्तुत:वक्ता एक ही प्रकार की बात कहता, किन्तु श्रोता यदि बैठे दस हो तो, दस प्रकार के आधार [ तात्पर्य ,आशय ] ग्रहण करते है। व्यक्ति की बुद्धि पर राजसी गुण रजोगुण, तामसी गुण के गुणों का प्रभाव होने से उसी स्तर की वार्ता पकड़ पाता है। इसलिए एक वैचारिक बंधन आ जाता हैं। इसलिए मतभेद स्वभाविक होता हैं , काल और भाषा का भी भेद सत्य धारा में बाधा आना कोई खेद का विषय नही।
अपनी दिशा बदलो दशा अपने आप बदल जाएगी ,.. Change its direction will change on its own.. AAYURVED, MODREN, NUTRITION DIET & PSYCOLOGY गोपनीय ऑनलाइन परामर्श -- आपको हमारा परामर्श गोपनीयता की गारंटी है. हमारा ब्लॉग्स्पॉट, विश्वसनीय, सुरक्षित, और निजी है. एक उर्जावान, दोस्ताना, पेशेवर वातावरण में भौतिक चिकित्सा के लिए सर्वोत्तम संभव कार्यक्रम प्रदान करना है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें