सोमवार, 18 नवंबर 2013

मुक्ति

मुक्ति 
मुक्ति बोध धन के आगमन से दुखों की मुक्ति माना जाता हैं. संसार के सभी अभाव और आवश्यकता का निराकरण धन के आगमन से हो जाता हैं. यथा भूख की निव्रती धन से भोजन खरीदने से हो जाती हैं, शरीर की इच्छा को धन के मध्यम से ख़रीद कर संतोष प्राप्त किया जाता हैं, जैसे मकान, वस्त्र, वाहन इत्यादि . फिर भी दुख हमारा पीछा नही छोड़ता, तब मुक्ति को कैसे प्राप्त करे. आत्मा तो निर्विकार और निर्लिप्त हैं, किंतु "मैं" कामना हूँ, के कारण ही जैसे मैं सुखी हूँ, मैं दुखी हूँ, मैं बीमार या मैं स्वतंत्रत हूँ, आदि मानने वाले ही शब्द उत्पन्न का कारण होता हैं. और जब विवेकख्याती जाग्रत होती तो मुक्ति हो जाती हैं.जब पुरुष का प्रति बिंब जब प्रकृति पर पड़ता तो स्वभाव उत्पन्न होता हैं. जब ज्ञान उदय होता तो विवेक बुद्धि के मध्यम प्रकृति और पुरुष दोनों के एक स्वरूप को जाना जाता हैं. उसके बाद मुक्ति मार्ग की बाधाये अपने आप दूर हो जाती और मुक्ति मार्ग खुल जाता हैं.  

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