दुःख
प्रत्यक्ष दिखाई देने वालो पदार्थों से दुःख की निवृति नही होती. जैसे भोजन करने से पूर्ण तृप्ति होने का अहसास होता की अब भोजन की आवश्यकता नही किंतु कुछ ही काल के बाद फिर से भूख लग जाती हैं, इसी प्रकार से बीमार के लिए औषधि सेवन करते हुए भी बीमारी का बढ़ाना देखा जाता हैं, या दवाई के खाने से फिर कुछ समय के लिए तो लगता की बीमारी ठीक हो गई परन्तु कुछ समय बाद फिर उत्पन्न हो जाती हैं. इसी प्रकार से स्त्री-पुरुष, मकान, धन, प्रतिस्पर्धा के परिणाम इत्यादि भौतिक पदार्थों से क्षणिक ख़ुशी मिलती हैं. परन्तु दुख की निवृति होती नही दिखाई देती, जैसे नही बुझाने वाली कामनाओं का यज्ञ आहुति में कामनाओं रूपी घी का निरंतर प्रवेश अग्नि को जलाता रहता हैं. जिस तत्वों या कारणों से हमें ख़ुशी मिलती उसी कारणों से दुःख की प्राप्ति होती हैं. अथार्त इस से ये सिद्ध होता ही दृश्य पदार्थ हमको पूर्णरूपेण दुखों को समाप्त करने में असफल होता हैं .इस लिए वैदिक मनोविज्ञान का जानना जरूरी होता हैं.
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