गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

अभाव

अभाव का भाव 
मानव जीवन में कई बार अभाव की शिकायत रहती की अमुक वस्तु या संज्ञा के कारणों से अभाव हैं जब की अभाव होता ही नही जिसको हम अनुउपब्धता के कारण से अभाव को मान लेते हैं और अभाव स्वीकार कर  लेते हैं.जिससे हमारे जीवन की प्रगतिशील अवस्था में संकट उत्पन्न होता हैं और हम पिछड़ जाते और जीवन में बाधा बढती जाती हैं रिस्तो में खटास या कटुता आ जाती, दुखो के साथ बैर-भाव बढ़ जाता हैं, इस के लिए हमे उन मूल जिसके पीछे मूल कारणों का जानना जरूरी होता हैं, मूलतः ज्ञान की कमी के कारण हो ऐसा होता हैं जो हम देख नही सकते, इस संसार में तीन प्रकृति होती रजोगुण,तमोगुण,और सतोगुणी इन के बंधन के कारणों को जानना जरूरी होता हैं. आँखों से दिखाई नही देना जिसका कारण अभाव को स्वीकार कर लिया जाता हैं . कई बार तो हमारे दोषों के कारण भी हमें दिखाई नही देता जबकि भाव का होना पाया जाता हैं.जिस के पीछे मूल चार कारण होते हैं,
.अधिक दूरी - जब कोई अधिक दूरी पर होने से दिखाई नही देता जैसे-आकाश में उड़ता हुआ पक्षी बहुत दूरी पर होने से हमको दिखाई नही देता. [ जैसे किसी भी व्यवसाय की लाभ या हानी को ]
2. अति समीप - बहुत नज़दीक एक दम निकट अवस्था में जैसे आँखों का काजल या भौहें हमारी आँखों के समीप होते हुए भी उस अवस्था को नही देखा जा सकता.[ अपना बेटा के गुण-दोष को भी देख सकते या व्यापार भी हो सकता ]
3. हानी - शरीर अंगों की क्षति के कारण होना होता हैं जैसे एक अंधे को रूप के बारे में सुंदरता का ज्ञान नही हो पाता और बधिर को शब्दों का हमेशा अभाव रहता की गीत कैसा गाया गया या संवाद-भाषण कैसा रहा. [ यहा मनोवैज्ञानिक कारण भी इस अवस्था को प्राप्ति होती हैं ]
4 . उपादान - बुद्धि और वस्तु के बीच में किसी वस्तु का होना होता दिखाई नही देता जैसे की दीवार के परे कोई वस्तु पड़ी हो [ आलस के कारण एक कमरे से दुसरे कमरे में नही जाना ]  
        ये सभी दोषों के कारण हम अपनी अज्ञानता को बंधनों से मुक्ति नही मिलने से आप सी पारिवारिक व्यवहार, सामाजिक व्यवहार और व्यापारी व्यवहार के गुणों के भाव हो नही देख सकते, इसलिए विवेक को जमाना जरूरी होता हैं
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