गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

प्रमाण

प्रमाण
प्रमाण तीन प्रकार के होते है, 1.प्रत्यक्ष प्रमाण, 2. अनुमान प्रमाण, 3.शब्द प्रमाण   
किसी तत्व को या किसी अर्थ को हमने अभी तक नही जाना, जो पहले नही जाना हुआ निश्यात्मक ज्ञान, "प्रमा" कहलाता हैं. आत्मा या बुद्धि एक या दोनों इन का "प्रमा" सर्वश्रेष्ठ साधन, जो उत्पन्न होने से प्रमाण हो प्रमाण कहा जाता हैं. इन तीन प्रमाणों से सभी प्रकार की सिद्धया प्राप्त हो जाती हैं.
1. प्रत्यक्ष प्रमाण - जो प्रमाण  होता वो आप के सामने हैं जैसा भी सोना अथवा पीतल, स्वस्थ्य या बीमार, या दिन या रात  
2. अनुमान प्रमाण - आप किसी भी तत्व का अनुमान लगा कर सकते की जैसे कही धुआँ उठ रहा तो वहां आग  होने का अनुमान प्रमाण जान सकते, क्रोध या हँसमुख चेहरे से दिल की बात और बादलों को देख कर वर्षा होने या नही होने का अनुमान प्रमाण बता सकते .
3. शब्द प्रमाण - चित्त की वृत्तिया के शब्दों को प्रमाण माना जाता हैं. जैसे एक युवक किसी सुंदरी का रूप [ सुन्दर युवती ] को देखता तो मोह सुख-दुःख का भेद से, उसी सुंदरी को कोई कुत्ता देखता तो माँस का पिंड जो उस को काट सकता है, अर्थार्त प्रमाणों में भी भ्रम और सच का जानना जरूरी होता है.  

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