गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

गुणों के धर्म

सत्व हल्का होता और प्रकाश वान हैं. इस कारण सत्व-प्रधान पदार्थ हलके होते है. जैसे हलकी [  हल्की ] होने से आग उपर की और जला करती हैं. वायु तिरछी चलती हैं, इन्द्रियां घोड़ों के वेग से चलती हैं, कारण की इन्द्रिया बलवंत होने से शीघ्रता से काम करती हैं. सत्व की प्रधानता से अग्नि में प्रकाश हैं. इसी प्रकार इंद्रिय और मन प्रकाशशील होते हैं. सत्व और तमस स्वयं अक्रिय हैं. इसलिए अपना अपना कम करने में असमर्थ हैं,  रजस् क्रिया वाला होने से उसको उत्तेजना देता हैं और अपने काम में प्रवृत करता हैं. जब शरीर में रजस्  प्रधान होता हैं, तब उत्तेजना और चंचलता बढ़ जाती है. रजस् गुण चल स्वभाव होने से हल्के सत्व को प्रवृत करता हैं. किंतु तमोगुण भारी होने से रजोगुण को रोकता हैं. जब शरीर में तमस् [ तमोगुण ] प्रधान होने से शरीर भारी होता और काम में प्रवृति नही होतीं .  
       गुणों के परस्परं विरोधी होने पर भी सबका एक ही उद्देश्य हैं. सत्व [ सतोगुण ] हल्का हैं, तमस् स्वयं भारी जो स्थिर करता है. रजस् उत्तेजित करता है. इस प्रकार तीनो गुण परस्परं विरोधी हैं, किन्तु दीपक के सदृश्य इनकी प्रवृति एक ही प्रयोजन से है. जिस प्रकार बत्ती और तेल अग्नि से विरोधी होते हुए भी अग्नि से विरोधी होते हुए भी अग्नि के साथ मिले हुए प्रकार का सिद्ध करते है. इसी प्रकार सत्व, रजस्, और तमस् परस्परविरोधी होते हुए भी एक दुसरे के अनुकूल कार्य करते है.       

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