गुणों का परिणाम
जिस जिस विकृति का प्रत्यक्ष होता जाता हैं उस प्रत्यक्ष से उसकी प्रकृति का अनुमान किया जाता हैं. और वो शब्द वेद [ ज्ञान ] हो जाता हैं. [ इस प्रकार प्रत्यक्ष, अनुमान, और ज्ञान तीनों प्रमाण हो जाते हैं ]
चेतन -तत्व कूटस्थ नित्य हैं और जड-तत्व गुण परिणामी नित्य हैं. जो एक क्षण भी बिना परिणाम नही रहता परिणाम का लक्ष्ण एक धर्म को छोड़ कर दूसरा धर्म धारण करता हैं. परिणाम दो प्रकार का होता है. एक स्वरूप अर्थात सदृश्य परिणाम; दूसरा विरूप अर्थात विसदृश्य परिणाम. जिस प्रकार दूध दूध की अवस्था में ही रहने का परिणाम होता हैं. तब भी उसके परमाणु स्थिर नही रहते, चलते ही रहते हैं; इस अवस्था में दूध में दूध बने रहने का परिणाम हो रहा है. यह सदृश्य अर्थात स्वरूप परिणाम हैं. दूध में जामन पड़ने के बाद जब दही बनने का परिणाम होता हैं. अथवा एक निश्चित समय के पश्चात जब दूध में दूध के बिगड़ने का यानि खट्टा होने का परिणाम होता है. तब वह विरूप अर्थात विसदृश्य परिणाम है. विरूप अर्थात विसदृश्य परिणाम तो प्रत्यक्ष होता हैं, किंतु उस प्रत्यक्ष से स्वरूप अर्थात सदृश्य परिणाम अनुमान से जाना जाता है. इसी प्रकार से तीनों गुणों का अलग अलग अपने सरूपों तीनों प्रकृति सतगुण, रजोगुण,और तमोगुण स्वंय में प्रवृत होते तो सदृश्य परिणाम होता हैं. इसी को मूल प्रकृति, प्रधान, अव्यक्त कहते है. जो सभी जड़ों का मूल कारण है. जब तीनों जड तत्व इक्कठा होकर एक दूसरे को दबाकर परिणाम में प्रवृत होते है तो वह विरूप परिणाम होते हैं. इन गुणों को विषम परिणाम कहते हैं .
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