सगुण और निर्गुण
भारतीय वैदिक मनोयोग से जुड़ा आधुनिक मनोविज्ञान में सामजस्य ताल-मेल की कोशिशें नहीं की गयी. जब की वैदिक मनोविज्ञान ही बृह्म मनोविज्ञान हैं, आधुनिक की जननी ही वैदिक मनोविज्ञान हैं, आधुनिकतम में वैदिक सगुण और निर्गुण शब्दों को प्रकट और अप्रकट के रूप में लिखा जा सकता. किसी शब्द संज्ञा के अप्रकट के गुणों को पहचाना जा सकता जो अनुभवी होने से अनुमान प्रमाण तौर पूर्वाभास हो जाता अर्थार्त धुआँ होने से अनुमान लगाया जा सकता हैं की जिस स्थान पर धुआँ निकालने की अवस्थाओं में ये देख कर अनुमान लगाया जा सकता हैं की ये धुआँ इसी प्रकार से आगे आग लगाने को व्यवस्थित किया जा सकता हैं, अथवा आगे आग को लगाना अथवा बुझाना हैं, काठ [ लकड़ी ] में आग है जो निर्गुण हैं यानि अदृश्यता से हैं, गन्ना में रस, तिल में तेल, दूध में मलाई सगुण जो प्रत्यक्ष दीखता हैं. लकड़ी जल रही जिसमें आग दिखाई देती, गुलाब का फुल गुलाबी होता, परन्तु निर्गुण का प्रत्यक्षिकरण होता की गुलाब बगीचे में पैदावार होता हैं, कांटेदार टहनी होती हैं, गुलाब का इत्र बनाया जाता हैं, यानी एक सिक्के के दो पहलू होते हैं निर्गुण और सगुण - इसी प्रकार से मनोरोगी के रोग का इलाज किया जाता की दिखाई देने वाला और नहीं दिखाई देने वाला रोग जो शारीरिक के साथ मानसिकता जो परस्पर एक दुसरे को कितना प्रभावित करता हैं.
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