शनिवार, 10 नवंबर 2012

संतुलित आहार पोषण का मनोविज्ञान महत्व कैसे जाने

`मन का विज्ञानं , मनोविज्ञान = मन की यात्रा में भ्रम जंजाल होता है ,रास्ते में एक चोराया [ चार दिशा ] आता उस समय भ्रम दिशा से मुक्ति देना , मिलना या अधिक विचारो से मुक्त होना . मैदानी भाग से हटकर समुन्द्र में जब सूर्य उदय होने की दिशा का भ्रम होता है, उस अवस्था में मन की स्थति को जानना ही मनोविज्ञान कहलाता है .सोना और पीतल दोनों पिली धातु होती ,पीलापन भ्रम पैदा करता है, इस मनोदशा के ज्ञान को विज्ञानं जानना ही, भ्रम की मनो गति में उत्पन्न प्रभावी विसंगति को दूर करना . जैसे हम परिवार के चार सदस्य एक चार रास्तो की भाती है. मेने अपने परिवार के सभी सदस्यों के सामने चढाई    शब्द का वाक्यम प्रयोग करने को कहा तो [ १ ] श्री मती जी, ने कहा मुल्हाने में दरगाह पर चादर चढाई [ २ ] पुत्री ने कहा साधु ने एक लोटा भांग चढाई [ ३ ] पुत्र, ने, कहा धुड सवार ने घोड़े पर टांग चड़ाई [ ४ ] पुत्र २, ने कहा हिमालय की कठिन चढाई होती है . इस प्रकार से चारो सदस्यों में प्रतिएक के शाब्दिक भाव में मनोगती से उत्पन्न उत्तेजनाओ के प्रभावी विसंगति नजर आ रही है ,सभी के निम्न भाव विचार इस प्रकार से है .[ १ ] चढाई = ओढ़ना [ २ ] चढ़ाई = पीना  [ ३ ] चढ़ाई = सवारी [ ४ ] चढ़ाई = चढ़ाई , इस प्रकार से सभी चारो सदस्यों के आप सी विचार , तर्क , उपकल्पना या मन के उत्तेजित  भाव एक दुसरे से मेल नही खाते, जिस से मन में भ्रम की स्थति पैदा होती और विचारो कर्म बंधन आ ही जाता है .                                                                                                                                                                बुद्धि का कुपोषण =  आप जिसके बिच [ पर्यावरण ] में खड़े हो ,वही पर अपने आप को समज लेना ,एक विचार बंधन आ ही जाता है , पैदा होते समय खाली अभ्यास पुस्तिका की तरह होते हो जो सिखा उसे लिखते हो ,सिखा उसी को पढ़ते हो या रटते हो यही अभ्यास होने पर उसी आदत पर विकास सुरु होता है .जैसे मेमनों के पर्यावरण समूह में पैदा हुआ शेर का बच्चा के सभी लक्षन मेमनों जैसे ही होते है ,परन्तु आत्म दर्शन होने पर मेमने स्वत ही दूर हो जाती है और अपनी दिन चर्या अलग-अलग शुरू हो जाती है, जो संस्कारो से ज्ञान पोषण अपने आप आ ही जाता है .                                                                                                                           ज्ञान की अत्यधिकता = दो छात्र अपनी गणित विज्ञानं की शिक्षा पूर्ण करके पोषण विज्ञानं की शिक्षा में प्रवेश लिया ,स्वय प्रेरित पोषण विज्ञानं को पढ़ने लगे ,किसी एक कक्षा में ३० विद्यार्थि थे, उन ३० विद्यार्थियो का खाना पोषण विज्ञानं के अनुसार सामूहिक बनाना था, की १० विधार्थी को वसा की कमी , १० विधार्थी को आयरन की कमी ,२० विद्यार्थी को प्रोटीन की कमी इस प्रकार दोनों छात्रो ने पोषण आहार का औसत निकला की प्रतिएक को तुलनात्मक औसत वसा ,आयरन और प्रोटीन की मात्रा की कुल आवश्यकता होगी ,इस प्रकार के आंकड़े तो अति ज्ञान के कारण पोषण आहार के आंकड़े सभी गलत होंगे, जो अति ज्ञान के बंधन में अहम आ जायेगा ,परन्तु यह पर औसत आंकड़ो की जगह प्रति व्यक्ति के भिन्न भिन्न आवश्यकताओ पर ध्यान देना जरूरी होता है .

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