शनिवार, 22 दिसंबर 2012

खाने-पिने में मेरा कर्म के प्रभाव

आप का अपना कर्म हमेशा उत्तम होता है .परन्तु सकारात्मक या नकारात्मक प्रभावित आप प्रेरणा से होते है .माना की आप भौतिक-इंद्रिय सुख में भोजन जो करते वो विप्रेरणा या प्रेरणा के कारणों से करते हो करते हो जो आप की बीमारी या स्वास्थ्य को बढ़ता हो ,दुध में दूध ,दलिया ,घी मिलाते तो कोई परिवर्तन नही होता ,परन्तु दूध में इमली ,निम्बू ,दही मिलते ही परिवर्तन हो जाता है और वो लाभदायक की बजाय स्वादिष्ट हो सकता है और अवगुणों को देता है जो बीमारी को बढ़ा सकता है .मेरी जीवन शैली का कारण मेरी प्रेरणा परन्तु में कितना चेतन ,अर्ध चेतन या अवचेतन अवस्था में स्वीकार करता हूँ ,जो मेरे मन में होता वो तन में दीखता मुझे नही दिआ तले अंधेरा की भाति दुसरो को ही दीखता है .

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