इस भौतिक-जीवन में मानव के आत्मा मे कर्म बंधन की परते होती है . इन कर्म बंधन के कारण विकास में बाधा आती है , जिससे चेतना शून्य यानि धूमल हो जाती है। यह आवरण काम ही है, जो विभिन्न रूपों में होती है . अग्नि में धुआँ , दर्पण पर धूल ,और भ्रूण पर गर्भाशय . कहने का मतलब कही धुआँ है तो अग्नि का होना अवश्य होता है, अर्थात मन में काम के विचार है, तो क्रोध पीछे अवश्य होगा .मन रूपी दर्पण पर धूल अवश्य आती है जिस को उदाहरण की पशु-पक्षिओ के समान वाली बुद्धि हो जाती है ,इस लिए प्रेरणा से पशुत्त्व दूर किया जाता है . गर्भाशय का आवरण में भ्रूण का मतलब उन वृक्षों से तुलना की जाती है जिस में जीव तो होता परन्तु चलने-फिरना में स्वतंत्र नही होते है।मन में विचार के अवरोध को धुएँ की भाती को ठीक से नियंत्रण किया जाए तो मन की अग्नि प्रज्वलित हो सकती है ...
अपनी दिशा बदलो दशा अपने आप बदल जाएगी ,.. Change its direction will change on its own.. AAYURVED, MODREN, NUTRITION DIET & PSYCOLOGY गोपनीय ऑनलाइन परामर्श -- आपको हमारा परामर्श गोपनीयता की गारंटी है. हमारा ब्लॉग्स्पॉट, विश्वसनीय, सुरक्षित, और निजी है. एक उर्जावान, दोस्ताना, पेशेवर वातावरण में भौतिक चिकित्सा के लिए सर्वोत्तम संभव कार्यक्रम प्रदान करना है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें