रविवार, 13 जनवरी 2013

स्पर्श

धीरज धारणा हमारी कैसे बढ़ाया  -आप ने देखा होगा की विचारों की जल्दबाजी अनावश्यक नुकसानदायक होती और विचार टूटने पर गुस्सा आ ही जाता है. और उस समय हम जो निर्णय करते वो गलत परिणाम देता है. मुझे याद आ रहा की मेरे चाचा जी को गायों के पालने का बहुत शौक था. एक बार एक नई गाय ख़रीद कर  लेकर आये और चाची जी को बोला गाय दुधारू है दूध निकाल लेना इस गाय को आज यही पर रखते है नई नई है, दो चार दिन बाद जंगल में चराने ले जाऊँगा, अभी मुझे सभी गायों को चराने जाना है. बाद में ज्यों ही शाम का समय हुआ और चाचा जी गायों की चरा कर लौटे, तब चाचा जी ने पूछा की गाय ने कितना दूध दिया [ निकला ], चाची जी बोली गाय तो दूध नही दिया, चाचा जी बोले क्यों क्या बात हुई, गाय ठीक नही या उसका मन नही लगा होगा, और महावीर भी आज शरारत बहुत की  [ उनका बेटा ]. महावीर बोला पिताजी माता जी ने गाय को लकड़ी से पिटा था. तब चाचा जी ने बताया की बेटा गाय हो या इन्सान सभी प्यार चाहते है, प्यार का स्पर्श मात्र बस, लाओ दूध भरने का बर्तन मैं दूध निकलता.हूँ  इस गाय का. इस प्रकार चाचा जी ने गाय के स्पर्श के लिए गाय को अपने हाथों से सहलाया, गाय के बदन पर हाथ फेर ओर गाय का दूध निकाल लिया .चाचा जी का कहना यह था की, जीव मात्र पशु, पक्षी हो या मनुष्य सभी को प्यार की आवश्यकता होती है .

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें